कोलकाता, 14 अगस्त (Udaipur Kiran) । पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने साफ कहा था कि राज्य के सरकारी अफसरों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी लेकिन चुनाव आयोग ने बुधवार को राज्य के मुख्य सचिव मनोज पंत को दिल्ली तलब कर स्पष्ट कर दिया कि संबंधित अफसरों पर कार्रवाई हर हाल में करनी होगी। आयोग ने इसके लिए 21 अगस्त तक की समयसीमा तय कर दी है। राज्य सचिवालय से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बुधवार देर शाम तक चुनाव आयोग के शीर्ष अधिकारियों के साथ राज्य के मुख्य सचिव मनोज पंत की बैठक हुई। करीब 45 मिनट की बैठक में स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि उन अधिकारियों के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई और एफआईआर करनी ही होगी। ऐसा नहीं किया गया तो फिर संवैधानिक तरीके से राज्य सरकार के खिलाफ कठोर कदम उठाए जाएंगे। बुधवार देर रात पंत दिल्ली से कोलकाता लौटे हैं।
राज्य के दो इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ईआरओ), दो असिस्टेंट ईआरओ और एक डाटा एंट्री ऑपरेटर पर आरोप है कि उन्होंने मतदाता सूची में फर्जी नाम जोड़ने के लिए अपनी आधिकारिक आईडी अस्थायी कर्मचारियों के साथ साझा की। आयोग ने इन अधिकारियों को निलंबित करने और उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की सिफारिश की थी।
आरोप जिन अफसरों पर लगे हैं उनमें बारुईपुर पूर्व के ईआरओ देवोत्तम दत्त चौधरी, एईआरओ तथागत मंडल, मयना के ईआरओ बिप्लव सरकार, एईआरओ सुदीप्त दास और डाटा एंट्री ऑपरेटर सुरजीत हालदार शामिल हैं।
पिछले सोमवार राज्य सरकार ने चुनाव आयोग को सूचित किया कि केवल एईआरओ सुदीप्त दास और डाटा एंट्री ऑपरेटर सुरजीत हालदार को आयोग के काम से मुक्त किया गया है। न तो किसी को निलंबित किया गया और न ही एफआईआर दर्ज हुई। सरकार की ओर से यह भी कहा गया है कि भारी कार्यभार के कारण अधिकारी अक्सर अपनी आईडी सहयोगी कर्मियों से साझा कर देते हैं।
इसके बाद मुख्य सचिव को तलब कर बुधवार देर शाम हुई बैठक में आयोग के पूर्ण पीठ (फुल बेंच) ने पूछा कि आयोग के निर्देश अब तक लागू क्यों नहीं हुए। मुख्य सचिव को चारों अधिकारियों के खिलाफ उठाए गए कदमों की विस्तृत रिपोर्ट पेश करनी पड़ी। बैठक में यह मुद्दा भी उठा कि चुनाव आचार संहिता लागू न होने की स्थिति में आयोग को कार्रवाई का अधिकार है या नहीं। चुनाव आयोग की ओर से स्पष्ट बताया गया है कि मतदाता सूची संशोधन से लेकर उसमें बदलाव और हर तरह की गतिविधि के लिए केवल और केवल चुनाव आयोग नोडल एजेंसी है और सालों भर उसे ऐसे मामलों में कार्रवाई करने और निर्देश देने का संवैधानिक अधिकार है। उस पर केंद्र सरकार या कोई भी राज्य सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकती। किसी भी तरह के विवाद की स्थिति में सीधे सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप करेगा वह भी संवैधानिक दायरे में। क्योंकि चुनाव आयोग स्वायत है और चुनाव संबंधी दस्तावेज और गतिविधियों के लिए संपूर्ण अधिकार रखता है।
साथ ही चुनाव आयोग ने साफ कर दिया कि एसआईआर को सभी राज्यों में लागू करना उसकी प्राथमिकता है और इस मामले में कानूनी अधिकार पूरी तरह आयोग के पास हैं। आयोग ने राज्य सरकार को चेतावनी दी कि निर्देशों की अनदेखी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
(Udaipur Kiran) / ओम पराशर
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