कानपुर, 29 मई . भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी कानपुर) के कोटक स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी की ओर से लाइफ ऑफ वेस्ट इनोवेशन के साथ भारत में ठोस कचरे के प्रबंधन’ को लेकर कार्यक्रम आयोजन करवाया गया. इस प्रोग्राम में नागरिक समाज संगठनों से जुड़े लोगों के साथ-साथ शिक्षाविदों और पॉलिसी मेकर्स ने हिस्सा लिया.
पैनल एक में देशभर में कचरा प्रबंधन से जुड़े मौजूदा मॉडलों और फील्ड एक्पीरियंस पर फोकस रहा. पैनल में चर्चा करते हुए शिव नादर यूनिवर्सिटी से आईं कावेरी गिल ने निचले हिमालयी क्षेत्रों में अपशिष्ट प्रबंधन पर लगभग 30 वर्षों के अपने अध्ययन के अनुभव साझा किए. उन्होंने एक पारिस्थितिक रूप से संतुलित, श्रम-संवेदनशील और कम पैसे खर्च करके कचरा प्रबंधन की आवश्यकता पर जोर दिया.
इस दौरान गंधार जोशी ने पुणे के SWaCH मॉडल को पेश किया. बता दें कि SWaCH एक कचरा इकट्ठा करने वालों का सहकारी संगठन है. जो तय उपभोक्ता शुल्क के आधार पर घर-घर जाकर कचरे को इकट्ठा करता है. उन्होंने 2005 के आई बाद पॉलिसी में आए उस बदलाव की ओर इशारा किया. जिसने इंटीग्रेटेड कचरे और ऊर्जा समाधानों की दिशा की ओर प्रेरित किया.
पैनल दो में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट पॉलिसी का रिव्यू शामिल था. इस पैनल में चर्चा करते हुए अहमदाबाद की सीईपीटी यूनिवर्सिटी की मर्सी सैमुएल ने बताया कि स्वच्छ भारत मिशन जैसे कार्यक्रम किस तरह से शहरों को अपने अपशिष्ट प्रबंधन ढांचे को पुनर्गठित करने में मदद की है.
पैनल तीन में टेक्नोलॉजी और वेस्ट मैनेजमेंट पर चर्चा की गई. इसमें आईआईटी कानपुर के मनोज तिवारी ने अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों के अनुकूलन में निर्णय विज्ञान की महत्ता को उजागर किया. आईआईटी बीएचयू के आरएस सिंह ने पैनल में बात करते हुए जीवन चक्र मूल्यांकन को सतत विकास लक्ष्यों से जोड़ने पर जोर दिया.
आईआईटी कानपुर के प्रो. राजीव जिंदल और अंकिता भौमिक ने लखनऊ कैंट को केस स्टडी के तौर पर प्रस्तुत करते हुए बताया कि तकनीक का इस्तेमाल किस तरह अपशिष्ट प्रबंधन में मौजूद कमियों को दूर करने के लिए किया जा रहा है. आईआईटी कानपुर से ही कोरी ग्लिकमैन ने इंफोसिस कैंपस में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर अपने कार्य अनुभव को साझा करते हुए बताया कि कचरे को एक बोझ नहीं, बल्कि एक संसाधन के रूप में देखने की आवश्यकता है.
/ रोहित कश्यप
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