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आखिर कैसे बलि के बाद भी जिंदा हो जाता है बकरा, अक्षत फेंकते ही लगता है चलने, जानें आखिर कैसे होता है ये चमत्कार ?

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भारत में एक मंदिर ऐसा भी है, जहां सदियों से एक रहस्यमय चमत्कार देखा जा रहा है। यहां बलि चढ़ाए गए बकरे की गर्दन काटने के बाद भी वह फिर से जीवित हो उठता है। जैसे ही पुजारी उस पर अक्षत (चावल के दाने) फेंकते हैं, वह बकरा उठकर चलने लगता है। यह घटना न केवल श्रद्धालुओं को अचंभित करती है, बल्कि यह वैज्ञानिक सोच के सामने भी एक रहस्य बनकर खड़ी है।

यह घटना किसी कहानी या कल्पना नहीं, बल्कि स्थानीय लोगों और भक्तों की आंखों देखी सच्चाई है, जिसे हर साल हजारों लोग अपनी आंखों से देखने आते हैं।

कहां स्थित है यह चमत्कारी मंदिर?

यह चमत्कारी घटना मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ या ओडिशा की सीमाओं पर बसे किसी आदिवासी बहुल क्षेत्र के मंदिर से जुड़ी मानी जाती है, जहां देवी या ग्रामदेवता की बलि प्रथा वर्षों से चली आ रही है। हालांकि, आधुनिक काल में बलि प्रथा पर कानूनी रोक है, लेकिन कई स्थानों पर यह परंपरा की शक्ल में आज भी रह-रहकर सामने आती है

क्या है चमत्कार का रहस्य?

स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यह चमत्कार देवी की कृपा और दिव्य शक्ति का परिणाम है। पुजारी जब विशेष मंत्रों के साथ बकरे की बलि देते हैं और फिर उस पर अक्षत छिड़कते हैं, तो वह मृत बकरा अचानक झटके से उठकर चलने लगता है। यह दृश्य वहां मौजूद हर व्यक्ति को स्तब्ध कर देता है।

कुछ जानकारों का मानना है कि यह बलि की रस्म प्रतीकात्मक होती है। यानी बकरे की गर्दन काटने की पूरी प्रक्रिया दिखावटी रूप में की जाती है, लेकिन वास्तव में उसकी जान नहीं ली जाती। अक्षत डालते ही वह उठता है, जिससे लोगों को लगता है कि वह चमत्कारिक रूप से जीवित हो गया।

भक्तों की गवाही और आस्था

भक्तों का मानना है कि यह देवी की शक्ति का प्रत्यक्ष प्रमाण है। उनका कहना है, "यह केवल मां की इच्छा से ही संभव है। यह बकरा उनके आशीर्वाद से फिर से जीवित होता है। हम हर साल इसे अपनी आंखों से देखते हैं।"

इस परंपरा के चलते हर साल नवरात्र और विशेष पर्वों पर इस मंदिर में भारी भीड़ उमड़ती है। श्रद्धालु इस चमत्कार को देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं और देवी से अपने जीवन की समस्याओं से मुक्ति की प्रार्थना करते हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या कहता है?

वैज्ञानिक इस चमत्कार को मानव मन की आस्था और भ्रम का मिश्रण मानते हैं। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यह बेहोशी या संज्ञाहरण जैसी तकनीकों का प्रयोग भी हो सकता है, जिससे बकरा कुछ समय के लिए अचेत हो जाता है और फिर उठ खड़ा होता है। परंतु, अब तक किसी भी वैज्ञानिक अध्ययन में इस घटना को पूरी तरह खारिज या साबित नहीं किया जा सका है।

निष्कर्ष:

भारत की धरती चमत्कारों और रहस्यों की भूमि रही है। यह घटना एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करती है कि आस्था, परंपरा और चमत्कार का रिश्ता आज भी जीवित है। चाहे यह देवी की कृपा हो या कोई प्राचीन तकनीक, बलि के बाद भी जीवित हो जाने वाला बकरा आज भी लाखों लोगों की श्रद्धा और रहस्य का केंद्र बना हुआ है।

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