नई दिल्ली। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रेम संबंधों के दौरान बने सेक्सुअल रिलेशन को लेकर एक बहुत अहम टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की एकल पीठ ने कहा कि अगर कोई महिला इस बात को जानते हुए कि सामाजिक कारणों से प्रेमी के साथ विवाह संभव नहीं है, फिर भी वर्षों तक सहमति से शारीरिक संबंध बनाती है, तो इसे दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता है। इसी के साथ अदालत ने महिला की तरफ से दाखिल याचिका को खारिज कर दिया। महिला ने अपने सहकर्मी पर शादी का वादा करके रेप का आरोप लगाया था।
महिला ने महोबा जिले के चरखारी थाना क्षेत्र में 2019 में अपने सहकर्मी लेखपाल पर आरोप लगाया था कि उसने जन्मदिन की पार्टी के बहाने उसे बुलाया और नशीला पदार्थ खिलाकर दुष्कर्म किया और उसका वीडियो भी बनाया। पीड़िता के अनुसार, जब वो होश में आई तो आरोपी ने उससे शादी करने का वादा किया। हालांकि चार साल बाद जातिगत कारणों के चलते शादी से इनकार कर दिया। महिला ने बताया कि पहले उसने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई मगर वहां कोई कार्रवाई न होने पर उसने एससी-एसटी की विशेष अदालत में परिवाद दाखिल किया। मगर विशेष अदालत ने इसे दुष्कर्म का मामला नहीं माना और उसकी याचिका को खारिज कर दिया। इसके बाद महिला ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की मगर वहां से भी उसे कोई राहत नहीं मिली।
अदालत ने कहा कि महिला और आरोपी लंबे समय तक प्रेम संबंध में थे और दोनों के बीच आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बने थे। अब अगर कोई महिला यह जानती है कि सामाजिक कारणों या अन्य जातिगत बाधाओं के कारण शादी संभव नहीं है और उसके बावजूद वो वह स्वेच्छा से वर्षों तक संबंध बनाए रखती है, तो उसे दुष्कर्म के तौर पर नहीं देखा जा सकता है। उधर, आरोपी के वकील ने कोर्ट को बताया कि जब उसने महिला से अपने दिए हुए दो लाख रुपये वापस मांगे, तो उसके खिलाफ दुष्कर्म का केस दर्ज कराया गया।
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