News India Live, Digital Desk: A responsible nuclear power : आज जब ईरान और इज़राइल जैसे देशों के बीच तनाव चरम पर है, तो दुनिया को एक बार फिर परमाणु हथियारों का डर सता रहा है। ऐसे में यह सवाल उठना लाज़मी है कि भारत, जो खुद एक परमाणु शक्ति संपन्न देश है, वह परमाणु हथियारों को नियंत्रित करने वाली अंतरराष्ट्रीय संधियों पर हस्ताक्षर क्यों नहीं करता? खासकर, परमाणु अप्रसार संधि (NPT) से भारत हमेशा दूर क्यों रहा है?
इसका जवाब भारत के आत्मसम्मान और उसकी न्यायपूर्ण विदेश नीति में छिपा है।
परमाणु अप्रसार संधि (NPT) 1968 में लाई गई और 1970 में लागू हुई। इसका मकसद था- दुनिया में परमाणु हथियारों के फैलाव को रोकना। सुनने में यह बहुत अच्छा लगता है, लेकिन इसकी शर्तों में एक बड़ा झोल है।
यह संधि दुनिया को दो हिस्सों में बांटती है:
परमाणु शक्ति वाले देश: अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस और ब्रिटेन, जिन्होंने 1 जनवरी 1967 से पहले परमाणु परीक्षण कर लिया था। संधि इन्हें आधिकारिक तौर पर परमाणु हथियार रखने की इजाजत देती है।
अन्य देश: दुनिया के बाकी सभी देश, जिन्हें परमाणु हथियार बनाने या हासिल करने से रोका गया है।
भारत का मानना है कि यह संधि सरासर भेदभावपूर्ण है। यह कुछ देशों को विशेष अधिकार देती है और दूसरों पर पाबंदी लगाती है। भारत का तर्क हमेशा से यह रहा है कि अगर परमाणु निरस्त्रीकरण (Disarmament) हो, तो पूरी दुनिया के लिए हो। ऐसा नहीं हो सकता कि कुछ देश परमाणु हथियारों का जखीरा लेकर बैठे रहें और दूसरों को ज्ञान दें।
भारत का principled स्टैंड: सबकी सुरक्षा, सबके लिए नियम
भारत ने हमेशा “सार्वभौमिक, और बिना भेदभाव के निरस्त्रीकरण” की वकालत की है। भारत का कहना है कि जब तक सभी देश, खासकर P5 देश, अपने परमाणु हथियार खत्म करने के लिए एक समय-सीमा तय नहीं करते, तब तक किसी और पर दबाव बनाना गलत है।
भारत की परमाणु नीति रक्षात्मक है, आक्रामक नहीं। भारत ने “नो फर्स्ट यूज़” (No First Use) यानी ‘पहले इस्तेमाल न करने’ की नीति अपनाई है। इसका मतलब है कि भारत कभी भी किसी देश पर पहले परमाणु हमला नहीं करेगा। हमारा परमाणु कार्यक्रम केवल अपनी सुरक्षा और Abschreckung (deterrence) के लिए है, ताकि कोई हम पर हमला करने की हिम्मत न कर सके।
अन्य संधियाँ और भारत की दूरी
NPT के अलावा दो और प्रमुख संधियाँ हैं – CTBT (व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि) और TPNW (परमाणु हथियारों के निषेध पर संधि)। भारत ने इन पर भी हस्ताक्षर नहीं किए हैं। CTBT इसलिए कमजोर है क्योंकि जब तक अमेरिका और चीन जैसे बड़े देश इसे मंजूरी नहीं देते, यह लागू ही नहीं हो सकती। वहीं, TPNW में निगरानी और सत्यापन (verification) का कोई ठोस ढाँचा नहीं है और कोई भी परमाणु शक्ति वाला देश इसका हिस्सा नहीं है।
संक्षेप में, भारत परमाणु हथियारों के खिलाफ है, लेकिन ऐसे किसी भी भेदभावपूर्ण समझौते के खिलाफ भी है जो दुनिया को “हथियार वाले” और “बिना हथियार वालों” में बांटता हो। भारत एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति है और एक ऐसी दुनिया चाहता है जहाँ नियम सबके लिए बराबर हों।
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