नई दिल्ली: किसी भी देश की आर्थिक स्थिति कितनी मजबूत है, यह उसके पास मौजूद डॉलर समेत विदेशी मुद्रा से आंका जाता है। यानी जिस देश के पास जितनी ज्यादा विदेशी मुद्रा होगी, वह बाहरी झटकों से निपटने और कर्ज चुकाने में उतना ही ज्यादा सक्षम होता है। भारत और पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार की बात करें तो दोनों में जमीन-आसमान का अंतर है। विदेशी मुद्रा भंडार को लेकर पाकिस्तान भारत के सामने पिद्दी नजर आता है। कितना है विदेशी मुद्रा भंडार?अभी भारत के पास 688 अरब डॉलर से ज्यादा का विदेशी मुद्रा भंडार है। वहीं, पाकिस्तान के पास यह सिर्फ 15 अरब डॉलर के आसपास है। यह बड़ा अंतर दोनों देशों की नीतियों, आर्थिक ढांचे और कामकाज के तरीकों में फर्क के कारण है। एक जैसी हुई थी शुरुआतसाल 1947 में जब भारत और पाकिस्तान आजाद हुए, तो दोनों के पास विदेशी मुद्रा भंडार बहुत कम था। क्योंकि, दोनों देश अंग्रेजों के गुलाम थे। अंग्रेजों ने उनका खूब शोषण किया था और यहां उद्योग-धंधे भी नहीं थे।भारत का विदेशी मुद्रा भंडार साल 1991 तक लगभग स्थिर रहा। साल 1991 में भारत के सामने भुगतान संकट आ गया था। उस समय भारत के पास 2 अरब डॉलर से भी कम का भंडार था। इससे सिर्फ तीन हफ्ते तक ही आयात किया जा सकता था। लेकिन, यह संकट भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।भारत ने बड़े पैमाने पर आर्थिक सुधार किए। व्यापार में रुकावटें कम की गईं। रुपये की कीमत घटाई गई और इसे विदेशी मुद्रा में बदलने की अनुमति दी गई। अर्थव्यवस्था को विदेशी निवेश के लिए खोला गया। इन सुधारों से विकास को बढ़ावा मिला। निर्यात बढ़ा और विदेशों से पैसा आना शुरू हुआ। इससे विदेशी मुद्रा भंडार धीरे-धीरे बढ़ने लगा। अब यह 688 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। पाकिस्तान कैसे पिछड़ गया1960 के दशक में पाकिस्तान ने कुछ उद्योगों में सफलता हासिल की थी। लेकिन, वहां बार-बार राजनीतिक अस्थिरता रही, सेना का शासन रहा और आर्थिक नीतियां भी सही नहीं रहीं। इस वजह से पाकिस्तान का विकास नहीं हो पाया। पाकिस्तान बाहरी मदद पर बहुत ज्यादा निर्भर हो गया। उसे अमेरिका, चीन और IMF जैसे संस्थानों से खूब मदद मिली। इस मदद से पाकिस्तान को कुछ समय के लिए राहत तो मिली। लेकिन, इससे कर्ज लेने की आदत लग गई। निर्यात बढ़ाने में नाकामपाकिस्तान निर्यात या निवेश बढ़ाकर अपनी स्थिति सुधारने में नाकाम रहा। पाकिस्तान का निर्यात कुछ खास चीजों तक ही सीमित रहा, जैसे कि सस्ते कपड़े। वहीं, ऊर्जा जैसी चीजों का आयात लगातार बढ़ता रहा। इससे पाकिस्तान का चालू खाता घाटा बढ़ता गया और विदेशी कर्ज भी बढ़ता गया। इस वजह से पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार खाली होता गया। विदेशी मुद्रा भंडार में अंतर के 5 कारण भारत ने सर्विस सेक्टर, दवाइयों और IT जैसे क्षेत्रों में विकास किया। इससे निर्यात बढ़ा। वहीं पाकिस्तान कुछ सस्ते सामानों के निर्यात पर ही निर्भर रहा। 1991 के बाद भारत ने अपनी आर्थिक नीतियों को मोटे तौर पर बनाए रखा। पाकिस्तान में कभी लोकलुभावन नीतियां अपनाई गईं, तो कभी IMF के दबाव में कड़े कदम उठाए गए। भारत के केंद्रीय बैंक RBI ने समझदारी से काम लिया। वहीं, पाकिस्तान का केंद्रीय बैंक अक्सर राजनीतिक दबाव में काम करता रहा। भारत ने विदेशी निवेश को आकर्षित किया। विदेशों में रहने वाले भारतीयों ने खूब पैसा भेजा। पाकिस्तान में विदेशों से आने वाला पैसा कम था और वह ज्यादातर मध्य पूर्व के देशों पर निर्भर था। भारत ने अपनी राजनीतिक ताकत का इस्तेमाल करके दुनिया भर में आर्थिक संबंध बढ़ाए। पाकिस्तान ने सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया और आर्थिक मामलों को नजरअंदाज कर दिया। मुश्किलों में पाकिस्तानभारत और पाकिस्तान ने एक जैसी शुरुआत की थी। लेकिन, दोनों ने अलग-अलग रास्ते चुने। भारत ने सुधारों और दुनिया के साथ जुड़कर अपने भंडार को मजबूत किया। आज यह भंडार मुश्किल समय में भारत की रक्षा करता है। पाकिस्तान कमजोर आर्थिक ढांचे और बार-बार आने वाले संकटों से जूझ रहा है। इसलिए, वह अभी भी मुश्किलों से घिरा हुआ है।
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