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यूपी नहीं बिहार में आकाश आनंद की पहली परीक्षा, 2025 में कितनी तेज दौड़ेगी बीएसपी की हाथी?

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पटना: उत्तर प्रदेश में लगातार अपनी राजनीतिक जमीन गंवा रही बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) आगामी बिहार विधानसभा चुनाव से उम्मीदें पाल रही है। बिहार चुनाव में उम्मीदों को पूरा करने के लिए बीएसपी प्रमुख मायावती ने भतीजे आकाश आनंद को मोर्चे पर लगाया है।मायावती ने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी का मुख्य राष्ट्रीय समन्वयक बनाया है। आकाश को एक महीने पहले ही पार्टी में वापस लिया गया था। अब उन्हें तीन राष्ट्रीय समन्वयकों के ऊपर काम करने की जिम्मेदारी दी गई है। यह पद विशेष रूप से आकाश के लिए बनाया गया है। इसके साथ ही वह पार्टी में दूसरे नंबर के नेता बन गए हैं। बिहार में होगी आकाश आनंद की पहली परीक्षामुख्य राष्ट्रीय समन्वयक बनते ही आकाश आनंद की पहली परीक्षा बिहार विधानसभा चुनाव में होगी। यूं तो बिहार की अब तक की राजनीति पर नजर डालें तो बीएसपी यहां कभी भी निर्णायक राजनीति ताकत नहीं बन पाई। लेकिन 243 विधानसभा सीटों वाले बिहार विधानसभा में बीएसपी करीब 25-30 सीटों पर अपने मजबूत कैडर की वजह से हमेशा से प्रतिद्वंदी पार्टियों को टेंशन देती रही है। 2025 में सभी 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी बीएसपीदिनारा में शनिवार को बसपा (BSP) कार्यकर्ताओं की एक अहम बैठक हुई। इस बैठक में पार्टी के नेता रामजी गौतम और अनिल कुमार शामिल हुए। उन्होंने बिहार में पूरी ताकत से चुनाव लड़ने और सत्ता में आने का दावा किया। नेताओं ने कार्यकर्ताओं को एकजुट होकर चुनाव की तैयारी करने का आदेश दिया।बैठक में मुख्य अतिथि नेशनल कोऑर्डिनेटर सह राज्यसभा सांसद रामजी गौतम रहे। इस दौरान उन्होंने कहा कि 2025 के चुनाव में बीएसपी किसी के साथ कोई गठबंधन नहीं करेगी। पार्टी सभी 243 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी का प्रयास है कि वह बिहार में सत्ता की चाबी हासिल करे। बिहार में बीएसपी के साथ किन जातियों का वोटबिहार की राजनीति पर गौर करें तो यहां मोची, चमार या रविदास जाति से आने वाले वोटरों का झुकाव बीएसपी के प्रति माना जाता रहा है। हालांकि इस जाति के वोटर भी एकमुश्त बीएसपी को कभी वोट नहीं करते रहे हैं। इस जाति के 5.26 फीसदी वोटर हैं, जिनकी संख्या 68 लाख 69 हजार है। बिहार की राजनीति में बीएसपी हमेशा से वोटकटवा के रोल रही है। बीएसपी को सपोर्टर बिहार के अलग-अलग सीटों पर बिखरे हुए दिखते हैं। यही वजह है कि इनकी पार्टी के प्रत्याशियों को बिहार में मुश्किल से ही जीत मिलती रही है। बिहार में कितनी ताकतवर रही है बीएसपी?
  • 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव में बीएसपी के पांच उम्मीदवार जीते (सभी जीते हुए विधायक लालू यादव की RJD में चले गए।)
  • 2005 के फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा के 2 प्रत्याशी जीते
  • 2005 नवंबर के विधानसभा चुनाव में बीएसपी की ताकत फिर बढ़ी और 4 प्रत्याशी जीते। (सभी जीते प्रत्याशी जेडीयू में चले गए।)
  • 2009 में हुए उपचुनाव में नौतन विधानसभा से बीएसप के उम्मीदवार जीते। (जीतने के बाद बीजेपी में चले गए)
  • 2010 और 2015 बिहार विधानसभा चुनावों में बीएसपी शून्य पर रही।
  • 2020 के विधानसभा चुनाव में भी बीएसपी के एक प्रत्याशी को जीत मिली। (चैनपुर से बीएसपी के टिकट पर जीते मोहम्मद जमा खान जेडीयू में जाकर मंत्री बन गए।)
बिहार से नाउम्मीद ही रहे बीएसपी तो ही अच्छा: अश्कबिहार में बीएसपी के भविष्य को वरिष्ठ पत्रकार ओम प्रकाश अश्क नाउम्मीद नजर आते हैं। उन्होंने कहा कि इस वक्त बिहार में गठबंधन की राजनीति का दौर चल रहा है। ऐसे बीएसपी जैसी पार्टी के लिए अकेले दम पर जगह बना पाना आसान नहीं दिखता है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में मायावती, असदुद्दीन ओवैसी और उपेंद्र कुशवाहा समेत पांच दल गठबंधन में उतरे थे। लेकिन उसमें भी जमा खान को छोड़कर बीएसपी के तमाम प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गए थे। ओवैसी की पार्टी के पांच प्रत्याशी मुस्लिम वोटों के दम पर जीत पाए थे। बीएसपी के टिकट पर चैनपुर से मोहम्मद जमा खान जीते, लेकिन वह जेडीयू में जाकर मंत्री बन गए।अश्क कहते हैं कि उत्तर प्रदेश से सटा बिहार का शाहबाद का इलाका है। यहां बीएसपी की ठीक ठाक मजबूती रही है। शाहबाद के इलाके में कैमूर, बक्सर, औरंगाबाद, गया जैसे जिले शामिल हैं। लेकिन 2015 के विधानसभा चुनावों के बाद यहां से भी पार्टी कमजोर होती चली आ रही है। 2020 और 2024 के चुनावों में शाहाबाद के इलाके में आरजेडी ने खुद को मजबूत किया है। इस वजह से अब बीएसपी के लिए यहां भी राह कठिन हो गई है। अगर 2025 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी खाता भी खोल लेती है तो यह उसकी उपलब्धि ही मानी जाएगी।
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