नई दिल्ली: पूर्व सीजेआई एनवी रमना ने शनिवार को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम और केंद्र को संवैधानिक अदालतों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर ध्यान दिलाया। एसआरएम स्कूल और लॉ में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा, महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व दिए बिना लैंगिक समानता की बात करना दिखावा होगा।
कार्यक्रम के दौरान पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा, पिछले 75 सालों में सुप्रीम कोर्ट में केवल 11 महिला जज हुई हैं। इनमें से तीन ने 31 अगस्त 2021 को शपथ ली थी, जब वे सीजेआई थे। उनमें से दो रिटायर हो चुकी हैं। वहीं जस्टिस बीवी नागरत्ना सितंबर 2027 में 36 दिनों के लिए पहली महिला चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बनेंगी।
लैंगिक मुद्दे पर किया जाना चाहिए विचार
जस्टिस रमना ने आगे कहा, हमारी संस्थाओं को हमारे समाज का प्रतिबिंब होना चाहिए। लैंगिक विविधता और समावेश दिखावा नहीं है। यह सामाजिक वास्तविकताओं के साथ हमारे दृष्टिकोण को समृद्ध करने के लिए जरूरी है। इस मुद्दे पर बड़े पैमाने पर विचार करने की जरूरत है।
जस्टिस रमना ने बताया कि कैसे बुनियादी ढांचे की कमी के कारण नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल को 3 सितंबर को छह में से तीन कोर्टरूम बंद करने का नोटिस जारी करना पड़ा। उन्होंने कहा कि सीजेआई के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने सरकार और अन्य हितधारकों को तीन-स्तरीय न्याय वितरण प्रणाली के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा बनाने के लिए एक नेशनल ज्यूडिशियल इंफ्रास्ट्रक्चर अथॉरिटी बनाने के लिए मनाने की कोशिश की थी। लेकिन उनके प्रयास सफल नहीं हुए।
दो-तिहाई क्षमता से काम कर रहा हाई कोर्ट
एडवोकेट एएम सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की संवैधानिक अदालतों में नियुक्तियों के लिए सिफारिशों को तेजी से लागू करने की अपील का समर्थन किया था। उन्होंने कहा कि दशकों से हाई कोर्ट दो-तिहाई स्वीकृत क्षमता के साथ काम कर रहे हैं। निचली अदालतें 25,000 जजों की क्षमता के चार-पांचवें हिस्से के साथ काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि मामलों का लंबित होना सीधे तौर पर निचली अदालतों और हाई कोर्ट में जजों की कमी से जुड़ा है।
कार्यक्रम के दौरान पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा, पिछले 75 सालों में सुप्रीम कोर्ट में केवल 11 महिला जज हुई हैं। इनमें से तीन ने 31 अगस्त 2021 को शपथ ली थी, जब वे सीजेआई थे। उनमें से दो रिटायर हो चुकी हैं। वहीं जस्टिस बीवी नागरत्ना सितंबर 2027 में 36 दिनों के लिए पहली महिला चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बनेंगी।
लैंगिक मुद्दे पर किया जाना चाहिए विचार
जस्टिस रमना ने आगे कहा, हमारी संस्थाओं को हमारे समाज का प्रतिबिंब होना चाहिए। लैंगिक विविधता और समावेश दिखावा नहीं है। यह सामाजिक वास्तविकताओं के साथ हमारे दृष्टिकोण को समृद्ध करने के लिए जरूरी है। इस मुद्दे पर बड़े पैमाने पर विचार करने की जरूरत है।
जस्टिस रमना ने बताया कि कैसे बुनियादी ढांचे की कमी के कारण नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल को 3 सितंबर को छह में से तीन कोर्टरूम बंद करने का नोटिस जारी करना पड़ा। उन्होंने कहा कि सीजेआई के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने सरकार और अन्य हितधारकों को तीन-स्तरीय न्याय वितरण प्रणाली के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा बनाने के लिए एक नेशनल ज्यूडिशियल इंफ्रास्ट्रक्चर अथॉरिटी बनाने के लिए मनाने की कोशिश की थी। लेकिन उनके प्रयास सफल नहीं हुए।
दो-तिहाई क्षमता से काम कर रहा हाई कोर्ट
एडवोकेट एएम सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की संवैधानिक अदालतों में नियुक्तियों के लिए सिफारिशों को तेजी से लागू करने की अपील का समर्थन किया था। उन्होंने कहा कि दशकों से हाई कोर्ट दो-तिहाई स्वीकृत क्षमता के साथ काम कर रहे हैं। निचली अदालतें 25,000 जजों की क्षमता के चार-पांचवें हिस्से के साथ काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि मामलों का लंबित होना सीधे तौर पर निचली अदालतों और हाई कोर्ट में जजों की कमी से जुड़ा है।
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