चॉकलेट कंपनी कैडबरी ने कुछ साल पहले शाहरुख खान को लेकर एक विज्ञापन बनाया, जिसमें अनोखा प्रयोग किया गया। कंपनी ने AI की मदद से हजारों वर्जन तैयार किए, जिनमें शाहरुख स्थानीय दुकानदारों के लिए प्रचार करते नजर आ रहे थे। दुकानदारों की खुशी के बारे में सोचिए, जब वे लोगों को विज्ञापन दिखाते होंगे कि शाहरुख ने उनकी दुकान का प्रचार किया है। लेकिन अगर सरकार के नए नियम लागू होते हैं, तो ऐसे विज्ञापनों के साथ शर्तें जुड़ जाएंगी।
10% का नियम: प्रस्तावित नियमों के मुताबिक, अगर कोई विडियो या ऑडियो AI से बना है, तो उसके 10% हिस्से पर डिस्क्लेमर दिखाना होगा। शाहरुख वाला विज्ञापन इसलिए हिट हुआ, क्योंकि लोगों को उस पर यकीन था - नया नियम इसे ही खत्म कर देगा। AI की दुनिया मे एक कॉन्सेप्ट है - Uncanny valley। इसका मतलब है कि जब आर्टिफिशल चीज इंसानों जैसी दिखती है, तो शुरुआत में यूजर्स की प्रतिक्रिया सकारात्मक होती है। लेकिन, जब वह चीज इंसानों के और करीब पहुंचती है, तो लोग असहज हो उठते हैं। हालांकि जब उस चीज और इंसानों में कोई फर्क करना मुश्किल हो जाता है, तो लोगों की प्रतिक्रिया फिर से सकारात्मक हो जाती है।
मंत्रालय की मुश्किल: Uncanny valley में यह तय करना मुश्किल है कि कब कौन-सी सीमा पार हुई। लगता है कि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय इसी समस्या से दो-चार हो रहा है। मंत्रालय AI से बने कंटेंट को यह कहकर रेगुलेट करना चाह रहा है कि जब कोई उचित रूप से असली जैसा लगने लगे। लेकिन यहां उचित का क्या मतलब है और यह कानूनी रूप से कैसे तय होगा? AI के दुरुपयोग को लेकर मंत्रालय की चिंता जायज है, लेकिन हकीकत में हम सभी आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करते हैं। हम तस्वीरों पर फिल्टर लगाते हैं, मीम्स बनाते हैं - अगर इन पर डिस्क्लेमर देना पड़े तो फिर इनका मजा ही खत्म हो जाएगा।
अभिव्यक्ति की आजादी: मंत्रालय ने यह नहीं बताया कि उसने 10% का आंकड़ा कैसे तय किया? सरकार AI टूल्स को इंटरमीडियरी की तरह नियंत्रित करना चाहती है। लेकिन, ChatGPT और जेमिनी जैसे AI टूल डेटा जेनरेट करते हैं, इसलिए इन्हें इंटरमीडियरी नहीं माना जा सकता। सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म इंटरमीडियरी हैं और उनसे बिना डिस्क्लेमर वाला कंटेंट हटाने को कहा जा सकता है, जिससे अभिव्यक्ति की आजादी पर असर पड़ेगा।
इनोवेशन पर रोक: दिसंबर 2023 में सोशल मीडिया कंपनियों के साथ मंत्रालय की बैठक में तय हुआ था कि मौजूदा आईटी नियम ही डीपफेक को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त हैं। फिर अब मंत्रालय ने दिशा क्यों बदली? समस्या यह है कि भारत में इंटरनेट को नियंत्रित करने वाले विभाग तकनीक से कटे हुए हैं। वे इनोवेशन को बढ़ावा देने के बजाय उसे रोक रहे हैं। उन्हें अपने नियम-कायदों को लेकर और सोचना होगा।
(लेखक MediaNama के फाउंडर हैं)
10% का नियम: प्रस्तावित नियमों के मुताबिक, अगर कोई विडियो या ऑडियो AI से बना है, तो उसके 10% हिस्से पर डिस्क्लेमर दिखाना होगा। शाहरुख वाला विज्ञापन इसलिए हिट हुआ, क्योंकि लोगों को उस पर यकीन था - नया नियम इसे ही खत्म कर देगा। AI की दुनिया मे एक कॉन्सेप्ट है - Uncanny valley। इसका मतलब है कि जब आर्टिफिशल चीज इंसानों जैसी दिखती है, तो शुरुआत में यूजर्स की प्रतिक्रिया सकारात्मक होती है। लेकिन, जब वह चीज इंसानों के और करीब पहुंचती है, तो लोग असहज हो उठते हैं। हालांकि जब उस चीज और इंसानों में कोई फर्क करना मुश्किल हो जाता है, तो लोगों की प्रतिक्रिया फिर से सकारात्मक हो जाती है।
मंत्रालय की मुश्किल: Uncanny valley में यह तय करना मुश्किल है कि कब कौन-सी सीमा पार हुई। लगता है कि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय इसी समस्या से दो-चार हो रहा है। मंत्रालय AI से बने कंटेंट को यह कहकर रेगुलेट करना चाह रहा है कि जब कोई उचित रूप से असली जैसा लगने लगे। लेकिन यहां उचित का क्या मतलब है और यह कानूनी रूप से कैसे तय होगा? AI के दुरुपयोग को लेकर मंत्रालय की चिंता जायज है, लेकिन हकीकत में हम सभी आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल करते हैं। हम तस्वीरों पर फिल्टर लगाते हैं, मीम्स बनाते हैं - अगर इन पर डिस्क्लेमर देना पड़े तो फिर इनका मजा ही खत्म हो जाएगा।
अभिव्यक्ति की आजादी: मंत्रालय ने यह नहीं बताया कि उसने 10% का आंकड़ा कैसे तय किया? सरकार AI टूल्स को इंटरमीडियरी की तरह नियंत्रित करना चाहती है। लेकिन, ChatGPT और जेमिनी जैसे AI टूल डेटा जेनरेट करते हैं, इसलिए इन्हें इंटरमीडियरी नहीं माना जा सकता। सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म इंटरमीडियरी हैं और उनसे बिना डिस्क्लेमर वाला कंटेंट हटाने को कहा जा सकता है, जिससे अभिव्यक्ति की आजादी पर असर पड़ेगा।
इनोवेशन पर रोक: दिसंबर 2023 में सोशल मीडिया कंपनियों के साथ मंत्रालय की बैठक में तय हुआ था कि मौजूदा आईटी नियम ही डीपफेक को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त हैं। फिर अब मंत्रालय ने दिशा क्यों बदली? समस्या यह है कि भारत में इंटरनेट को नियंत्रित करने वाले विभाग तकनीक से कटे हुए हैं। वे इनोवेशन को बढ़ावा देने के बजाय उसे रोक रहे हैं। उन्हें अपने नियम-कायदों को लेकर और सोचना होगा।
(लेखक MediaNama के फाउंडर हैं)
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