नई दिल्ली: भारत अब डायनेमिक ट्रेड पॉलिसी की ओर बढ़ गया है। वह एक साथ कई मोर्चों पर काम कर रहा है। सरकार का साफ मैसेज है। वह राष्ट्र हित को सर्वोपरि रखकर विकसित देशों के साथ बड़े सौदे कर रही है। साथ ही चीन जैसे पड़ोसी से आने वाले निवेश पर लगे प्रतिबंधों की समीक्षा के लिए भी 'खुला दिमाग' रखती है। बशर्ते ये देश के लिए लाभदायक हों। यह नीति भारत के 'विकसित भारत 2047' के लक्ष्य की ओर बढ़ने के लिए संतुलित और लचीले नजरिये पर केंद्रित है। वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने इसके संकेत दिए हैं। गोयल ने कहा है कि भारत उन देशों के साथ निवेश की जांच को आसान बनाने पर विचार कर सकता है जिनकी सीमा भारत से लगती है। इस बारे में उद्योग जगत और मुमकिन है चीन से भी बातचीत की जाएगी। गोयल ने यह बात 'ईटी स्टार्टअप अवार्ड्स' कार्यक्रम में कही। उन्होंने यह भी बताया कि कई व्यापार समझौते अंतिम चरण में हैं। अमेरिका और यूरोपीय संघ (ईयू) के साथ समझौते अच्छी प्रगति कर रहे हैं।
भारत की व्यापार रणनीति में बदलावपीयूष गोयल ने भारत की व्यापार रणनीति को लेकर कई महत्वपूर्ण बातें कहीं। उन्होंने बताया कि भारत कई देशों के साथ व्यापार समझौते करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। यूरोपीय संघ (ईयू), अमेरिका और न्यूजीलैंड के साथ समझौते जल्द ही अंतिम रूप ले सकते हैं। ऑस्ट्रेलिया के साथ दूसरे चरण की बातचीत चल रही है। जबकि चिली, पेरू और यूरेशियाई देशों के साथ भी बातचीत जारी है। गोयल ने कहा कि कई और देश भारत के साथ व्यापार समझौते करना चाहते हैं। लेकिन, भारत के पास फिलहाल इतनी क्षमता नहीं है कि वह और अधिक देशों के साथ बातचीत शुरू कर सके।
जब उनसे पूछा गया कि अमेरिका के साथ उस बड़े व्यापार समझौते का क्या होगा जिसका जिक्र अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने किया था तो गोयल ने कहा कि यह समझौते के 'बड़े' या 'छोटे' होने का सवाल नहीं है। यह भारत के राष्ट्रीय हित का सवाल है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जहां भी भारत को अच्छा, निष्पक्ष और समान समझौता मिलेगा, भारत उस पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार रहेगा।
गोयल ने बताया कि यूरोपीय संघ और अमेरिका दोनों के साथ बातचीत काफी उन्नत चरण में है। उन्होंने उम्मीद जताई कि ओमान और न्यूजीलैंड के साथ समझौते भी बहुत जल्द पूरे हो जाएंगे। चिली भी इस समझौते को जल्दी खत्म करने के लिए उत्सुक है। गोयल ने कहा कि ये सभी पांच मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) एक साथ आगे बढ़ेंगे। उन्होंने कहा कि यह देखना होगा कि तारीखें कैसे तय होती हैं। लेकिन, प्रगति बहुत अच्छी हो रही है। गोयल ने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत आज विकसित और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के साथ बातचीत कर रहा है। भारत चाहता है कि वह इन देशों के भविष्य में योगदान दे, ठीक वैसे ही जैसे वह चाहता है कि ये देश भारत की 'विकसित भारत 2047' की यात्रा में योगदान दें।
15% टैरिफ पर क्या है भारत का रुख?अमेरिका के साथ व्यापार को लेकर पूछे गए सवाल पर गोयल ने कहा कि उद्योग जगत का मानना है कि 15% टैरिफ भारत के लिए एक अच्छा सौदा हो सकता है। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि टैरिफ का भुगतान भारतीय नहीं, बल्कि अमेरिकी करते हैं। इसलिए, बातचीत का मुख्य उद्देश्य यह पता लगाना है कि भारत को वह प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त कैसे मिले जो उसके व्यापार को बढ़ाने में मदद करे। गोयल ने बताया कि अमेरिका के साथ भारत का लक्ष्य 2030 तक वस्तुओं और सेवाओं में द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करके लगभग 500 अरब डॉलर तक पहुंचाना है। उन्हें विश्वास है कि भारत इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अच्छी स्थिति में है। जब उनसे पूछा गया कि अमेरिका के साथ बातचीत किस चरण में है तो उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा, 'राज को राज ही रहने दो।'
आरसीईपी पर रुख में बदलाव नहीं
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) से भारत के बाहर निकलने के बाद क्या भारत की व्यापार रणनीति में किसी बदलाव की आवश्यकता है, इस सवाल पर गोयल ने कहा कि भारत को गतिशील रहना होगा। विभिन्न देशों के साथ उनकी परिस्थितियों के अनुसार जुड़ना होगा। उन्होंने कहा कि भारत की अपनी जरूरतें हैं, जैसे कि रेयर अर्थ के लिए लचीली सप्लाई चेन बनाना। इसलिए, भारत दुनिया की बदलती परिस्थितियों पर नजर रखेगा। अपनी व्यापारिक रणनीतियों का निर्धारण करेगा। गोयल ने आश्वस्त किया कि आरसीईपी पर भारत के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है। उन्होंने आरसीईपी में शामिल होने के निर्णय को कांग्रेस और यूपीए सरकार का खराब नीतिगत निर्णय बताया। गोयल ने कहा कि भारत कभी भी आरसीईपी की मूल योजना का हिस्सा नहीं था। प्रभावी रूप से भारत चीन के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) में प्रवेश करने की पेशकश कर रहा था। उन्होंने कहा कि आज तक उन्हें ऐसा कोई भी व्यवसायी नहीं मिला है जो यह मानता हो कि चीन निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं की पेशकश करता है, जहां प्रतिस्पर्धी शर्तों पर जुड़कर पारस्परिक लाभ प्राप्त किया जा सके। गोयल के अनुसार, आरसीईपी चीन के लिए एकतरफा फायदेमंद होता और भारत को बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ता।
चीन के साथ कैसे बढ़ेंगे आगे?
हाल ही में चीन के साथ संबंधों में नरमी और रेयर अर्थ सप्लाई को लेकर कुछ विकास के बारे में पूछे जाने पर गोयल ने कहा कि भारत वर्षों से चीन के साथ जुड़ा हुआ है। 2020 (गलवान सीमा संघर्ष और कोविड से पहले) तक यह जुड़ाव काफी सामान्य था। अब जब सीमा विवाद काफी हद तक सुलझ गया है तो भारत के रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री चीन का दौरा कर चुके हैं। एससीओ शिखर सम्मेलन के हिस्से के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चीन गए थे। हालांकि, यह एक द्विपक्षीय यात्रा नहीं थी। गोयल ने कहा कि अगर चीजें सामान्य हो जाती हैं तो यह सभी के लिए अच्छा होगा।
प्रेस नोट 3 पर पुनर्विचार के बारे में पूछे जाने पर गोयल ने कहा कि सरकार का रवैया खुला है और वह इस पर विचार करेगी। उन्होंने कहा कि सरकार उद्योग जगत, अन्य मंत्रालयों और संभवतः चीन के साथ भी बातचीत करेगी। फिर यह तय करेगी कि क्या निवेश की जांच को ढीला किया जा सकता है।
स्टार्टअप इकोसिस्टम के बारे में गोयल ने कहा कि यह अभी शुरुआत है। सरकार विभिन्न नीतिगत पहलों और धन के माध्यम से स्टार्टअप इकोसिस्टम का समर्थन करने में सबसे आगे रही है। उन्होंने बताया कि 'स्टार्टअप फंड ऑफ फंड्स' का दूसरा चरण पहले ही घोषित किया जा चुका है। यह मुख्य रूप से डीपटेक इनोवेशन और स्टार्टअप्स पर फोकस करेगा। अनुसंधान और विकास (आरएंडी) पहल को भी 1 लाख करोड़ रुपये के फंड से बढ़ावा मिला है। गोयल ने समझाया कि जब 1 लाख करोड़ रुपये के सरकारी समर्थन में निजी क्षेत्र के निवेश को जोड़ा जाता है तो यह राशि और बढ़ जाती है। उन्होंने यह भी बताया कि भारत में इनोवेशन की लागत यूरोप या अमेरिका की तुलना में 7-8 गुना कम है। इसलिए, 1 लाख करोड़ रुपये के सरकारी वित्त पोषण से देश में लगभग 10 लाख करोड़ रुपये के इनोवेशन को बढ़ावा मिल रहा है। यह एक बहुत बड़ी राशि है।
भारत की व्यापार रणनीति में बदलावपीयूष गोयल ने भारत की व्यापार रणनीति को लेकर कई महत्वपूर्ण बातें कहीं। उन्होंने बताया कि भारत कई देशों के साथ व्यापार समझौते करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। यूरोपीय संघ (ईयू), अमेरिका और न्यूजीलैंड के साथ समझौते जल्द ही अंतिम रूप ले सकते हैं। ऑस्ट्रेलिया के साथ दूसरे चरण की बातचीत चल रही है। जबकि चिली, पेरू और यूरेशियाई देशों के साथ भी बातचीत जारी है। गोयल ने कहा कि कई और देश भारत के साथ व्यापार समझौते करना चाहते हैं। लेकिन, भारत के पास फिलहाल इतनी क्षमता नहीं है कि वह और अधिक देशों के साथ बातचीत शुरू कर सके।
जब उनसे पूछा गया कि अमेरिका के साथ उस बड़े व्यापार समझौते का क्या होगा जिसका जिक्र अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने किया था तो गोयल ने कहा कि यह समझौते के 'बड़े' या 'छोटे' होने का सवाल नहीं है। यह भारत के राष्ट्रीय हित का सवाल है। उन्होंने जोर देकर कहा कि जहां भी भारत को अच्छा, निष्पक्ष और समान समझौता मिलेगा, भारत उस पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार रहेगा।
गोयल ने बताया कि यूरोपीय संघ और अमेरिका दोनों के साथ बातचीत काफी उन्नत चरण में है। उन्होंने उम्मीद जताई कि ओमान और न्यूजीलैंड के साथ समझौते भी बहुत जल्द पूरे हो जाएंगे। चिली भी इस समझौते को जल्दी खत्म करने के लिए उत्सुक है। गोयल ने कहा कि ये सभी पांच मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) एक साथ आगे बढ़ेंगे। उन्होंने कहा कि यह देखना होगा कि तारीखें कैसे तय होती हैं। लेकिन, प्रगति बहुत अच्छी हो रही है। गोयल ने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत आज विकसित और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के साथ बातचीत कर रहा है। भारत चाहता है कि वह इन देशों के भविष्य में योगदान दे, ठीक वैसे ही जैसे वह चाहता है कि ये देश भारत की 'विकसित भारत 2047' की यात्रा में योगदान दें।
15% टैरिफ पर क्या है भारत का रुख?अमेरिका के साथ व्यापार को लेकर पूछे गए सवाल पर गोयल ने कहा कि उद्योग जगत का मानना है कि 15% टैरिफ भारत के लिए एक अच्छा सौदा हो सकता है। हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि टैरिफ का भुगतान भारतीय नहीं, बल्कि अमेरिकी करते हैं। इसलिए, बातचीत का मुख्य उद्देश्य यह पता लगाना है कि भारत को वह प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त कैसे मिले जो उसके व्यापार को बढ़ाने में मदद करे। गोयल ने बताया कि अमेरिका के साथ भारत का लक्ष्य 2030 तक वस्तुओं और सेवाओं में द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करके लगभग 500 अरब डॉलर तक पहुंचाना है। उन्हें विश्वास है कि भारत इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अच्छी स्थिति में है। जब उनसे पूछा गया कि अमेरिका के साथ बातचीत किस चरण में है तो उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा, 'राज को राज ही रहने दो।'
आरसीईपी पर रुख में बदलाव नहीं
क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) से भारत के बाहर निकलने के बाद क्या भारत की व्यापार रणनीति में किसी बदलाव की आवश्यकता है, इस सवाल पर गोयल ने कहा कि भारत को गतिशील रहना होगा। विभिन्न देशों के साथ उनकी परिस्थितियों के अनुसार जुड़ना होगा। उन्होंने कहा कि भारत की अपनी जरूरतें हैं, जैसे कि रेयर अर्थ के लिए लचीली सप्लाई चेन बनाना। इसलिए, भारत दुनिया की बदलती परिस्थितियों पर नजर रखेगा। अपनी व्यापारिक रणनीतियों का निर्धारण करेगा। गोयल ने आश्वस्त किया कि आरसीईपी पर भारत के रुख में कोई बदलाव नहीं आया है। उन्होंने आरसीईपी में शामिल होने के निर्णय को कांग्रेस और यूपीए सरकार का खराब नीतिगत निर्णय बताया। गोयल ने कहा कि भारत कभी भी आरसीईपी की मूल योजना का हिस्सा नहीं था। प्रभावी रूप से भारत चीन के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) में प्रवेश करने की पेशकश कर रहा था। उन्होंने कहा कि आज तक उन्हें ऐसा कोई भी व्यवसायी नहीं मिला है जो यह मानता हो कि चीन निष्पक्ष व्यापार प्रथाओं की पेशकश करता है, जहां प्रतिस्पर्धी शर्तों पर जुड़कर पारस्परिक लाभ प्राप्त किया जा सके। गोयल के अनुसार, आरसीईपी चीन के लिए एकतरफा फायदेमंद होता और भारत को बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ता।
चीन के साथ कैसे बढ़ेंगे आगे?
हाल ही में चीन के साथ संबंधों में नरमी और रेयर अर्थ सप्लाई को लेकर कुछ विकास के बारे में पूछे जाने पर गोयल ने कहा कि भारत वर्षों से चीन के साथ जुड़ा हुआ है। 2020 (गलवान सीमा संघर्ष और कोविड से पहले) तक यह जुड़ाव काफी सामान्य था। अब जब सीमा विवाद काफी हद तक सुलझ गया है तो भारत के रक्षा मंत्री और विदेश मंत्री चीन का दौरा कर चुके हैं। एससीओ शिखर सम्मेलन के हिस्से के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी चीन गए थे। हालांकि, यह एक द्विपक्षीय यात्रा नहीं थी। गोयल ने कहा कि अगर चीजें सामान्य हो जाती हैं तो यह सभी के लिए अच्छा होगा।
प्रेस नोट 3 पर पुनर्विचार के बारे में पूछे जाने पर गोयल ने कहा कि सरकार का रवैया खुला है और वह इस पर विचार करेगी। उन्होंने कहा कि सरकार उद्योग जगत, अन्य मंत्रालयों और संभवतः चीन के साथ भी बातचीत करेगी। फिर यह तय करेगी कि क्या निवेश की जांच को ढीला किया जा सकता है।
स्टार्टअप इकोसिस्टम के बारे में गोयल ने कहा कि यह अभी शुरुआत है। सरकार विभिन्न नीतिगत पहलों और धन के माध्यम से स्टार्टअप इकोसिस्टम का समर्थन करने में सबसे आगे रही है। उन्होंने बताया कि 'स्टार्टअप फंड ऑफ फंड्स' का दूसरा चरण पहले ही घोषित किया जा चुका है। यह मुख्य रूप से डीपटेक इनोवेशन और स्टार्टअप्स पर फोकस करेगा। अनुसंधान और विकास (आरएंडी) पहल को भी 1 लाख करोड़ रुपये के फंड से बढ़ावा मिला है। गोयल ने समझाया कि जब 1 लाख करोड़ रुपये के सरकारी समर्थन में निजी क्षेत्र के निवेश को जोड़ा जाता है तो यह राशि और बढ़ जाती है। उन्होंने यह भी बताया कि भारत में इनोवेशन की लागत यूरोप या अमेरिका की तुलना में 7-8 गुना कम है। इसलिए, 1 लाख करोड़ रुपये के सरकारी वित्त पोषण से देश में लगभग 10 लाख करोड़ रुपये के इनोवेशन को बढ़ावा मिल रहा है। यह एक बहुत बड़ी राशि है।
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