पटना: बिहार की राजनीति में 'तीसरी ताकत' बनने का प्रयास कर रहे प्रशांत किशोर की पार्टी 'जन सुराज' भी अब परिवारवाद के आरोपों से घिर गई है। गुरुवार को पार्टी द्वारा जारी 51 उम्मीदवारों की पहली सूची में, पूर्व केंद्रीय मंत्री और पूर्व नौकरशाह रामचंद्र प्रसाद सिंह (आरसीपी सिंह) की छोटी बेटी लता सिंह को नालंदा जिले की अस्थावां विधानसभा सीट से टिकट दिया गया है। यह फैसला प्रशांत किशोर के उस अभियान के ठीक विपरीत माना जा रहा है, जिसका मुख्य उद्देश्य बिहार की राजनीति से '1200 परिवारों के वर्चस्व' को खत्म करना था।
पीके की पार्टी में परिवारवाद
करीब तीन साल पहले जन सुराज यात्रा शुरू करने के बाद से प्रशांत किशोर लगातार यह दावा करते रहे हैं कि बिहार की राजनीति पर कुछ ही परिवारों का कब्जा है, जिनमें बेटा-बेटी, चाचा-चाची जैसे रिश्तेदार विधायक और सांसद बनते हैं। उनका लक्ष्य नए और योग्य नेताओं को आगे लाना था, लेकिन आरसीपी सिंह जैसे स्थापित नेता की बेटी को टिकट देने के बाद उनके दावे सवालों के घेरे में आ गए हैं।
कौन हैं लता सिंह?
लता सिंह पेशे से वकील हैं और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करती हैं। उनकी बड़ी बहन लिपि सिंह बिहार कैडर की आईपीएस अधिकारी हैं। दिल्ली के डीपीएस आरके पुरम से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने प्रतिष्ठित श्रीराम कॉलेज से ग्रेजुएशन और दिल्ली यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री हासिल की है। वह अपने पिता आरसीपी सिंह से राजनीति की बारीकियां सीखने की बात खुद स्वीकार कर चुकी हैं।
पात्रता को लेकर बात
लता सिंह को टिकट मिलने के बाद परिवारवाद पर उनसे पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा था, "परिवारवाद क्या होता है? राजनीति में आने के लिए जो पात्रता होनी चाहिए, अगर वह आपमें है तो आप राजनीति में आ सकते हैं। इसमें परिवारवाद की बात कहां से आती है?"लता सिंह के अलावा, जन सुराज ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की बेटी और केंद्रीय मंत्री रामनाथ ठाकुर की भतीजी जागृति ठाकुर को भी समस्तीपुर की मोरबा विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है।
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बहस का दौर शुरू
जन सुराज का यह कदम उन समर्थकों और आम जनता के बीच गहरी बहस का विषय बन गया है, जो प्रशांत किशोर के पारदर्शी और नए नेतृत्व के वादे पर भरोसा कर रहे थे। एक ओर जहां प्रशांत किशोर परिवारवाद के खिलाफ मुखर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी पार्टी में स्थापित नेताओं के परिजनों को टिकट मिलना इस अभियान के मूल विचार पर ही प्रश्नचिन्ह लगाता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि जन सुराज इस विरोधाभास को कैसे संबोधित करता है और जनता इस पर क्या प्रतिक्रिया देती है।
पीके की पार्टी में परिवारवाद
करीब तीन साल पहले जन सुराज यात्रा शुरू करने के बाद से प्रशांत किशोर लगातार यह दावा करते रहे हैं कि बिहार की राजनीति पर कुछ ही परिवारों का कब्जा है, जिनमें बेटा-बेटी, चाचा-चाची जैसे रिश्तेदार विधायक और सांसद बनते हैं। उनका लक्ष्य नए और योग्य नेताओं को आगे लाना था, लेकिन आरसीपी सिंह जैसे स्थापित नेता की बेटी को टिकट देने के बाद उनके दावे सवालों के घेरे में आ गए हैं।
कौन हैं लता सिंह?
लता सिंह पेशे से वकील हैं और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करती हैं। उनकी बड़ी बहन लिपि सिंह बिहार कैडर की आईपीएस अधिकारी हैं। दिल्ली के डीपीएस आरके पुरम से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने प्रतिष्ठित श्रीराम कॉलेज से ग्रेजुएशन और दिल्ली यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री हासिल की है। वह अपने पिता आरसीपी सिंह से राजनीति की बारीकियां सीखने की बात खुद स्वीकार कर चुकी हैं।
पात्रता को लेकर बात
लता सिंह को टिकट मिलने के बाद परिवारवाद पर उनसे पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा था, "परिवारवाद क्या होता है? राजनीति में आने के लिए जो पात्रता होनी चाहिए, अगर वह आपमें है तो आप राजनीति में आ सकते हैं। इसमें परिवारवाद की बात कहां से आती है?"लता सिंह के अलावा, जन सुराज ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की बेटी और केंद्रीय मंत्री रामनाथ ठाकुर की भतीजी जागृति ठाकुर को भी समस्तीपुर की मोरबा विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है।
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बहस का दौर शुरू
जन सुराज का यह कदम उन समर्थकों और आम जनता के बीच गहरी बहस का विषय बन गया है, जो प्रशांत किशोर के पारदर्शी और नए नेतृत्व के वादे पर भरोसा कर रहे थे। एक ओर जहां प्रशांत किशोर परिवारवाद के खिलाफ मुखर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर उनकी पार्टी में स्थापित नेताओं के परिजनों को टिकट मिलना इस अभियान के मूल विचार पर ही प्रश्नचिन्ह लगाता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि जन सुराज इस विरोधाभास को कैसे संबोधित करता है और जनता इस पर क्या प्रतिक्रिया देती है।
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