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सेकंड हैंड बुक्स से फर्स्ट हैंड कहानियां लिखने की कोशिश, बुक स्टोर से हो रही बस्तियों के बच्चों की पढ़ाई में मदद

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अनुष्का कोगटा , नई दिल्ली : मूलचंद मेट्रो स्टेशन से चंद कदमों की दूरी पर लाजपत नगर के एक छोटे से कोने में बसता है किताबों का संसार। किताबों की इस छोटी की दुकान को ‘रिसटर्स ऑफ द पीपल' नाम की संस्था चलाती है। इस स्टोर की शुरुआत 2001 में हुई थी और इसे वॉलंटियर्स ही चलाते है। इस स्टोर की सबसे खास बात यह है कि किताबों की बिक्री से होने वाली पूरी कमाई दिल्ली की झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले बच्चों की पढ़ाई पर खर्च किया जाता है।



यह पहल 1921 में लाला लाजपत राय की ओर से स्थापित 'सर्वेंट्स ऑफ द पीपल’ सोसायटी का ही एक हिस्सा है। लाजपत राय भवन के अंदर चलने वाली यह दुकान किसी भी सेकंड हैंड बुक स्टोर की तरह ही नजर आती है। लेकिन यहां के कलेक्शन में कुछ खास फर्स्ट एडिशन किताबें मौजूद है।

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10 रुपये में भी मिल रहीं किताबे

साथ ही, लेटेस्ट बेस्ट सेलर किताबें भी आपको यहां मिल जाएंगी, जो कि जानेमाने लेखकों और पब्लिशर्स और रीडर्स की ओर से डोनेट की गई है। इस वजह से पढ़ने के शौकीनों के लिए यह किसी स्वर्ग से कम नहीं है। आप यहां 10 रुपये लेकर भी आएंगे तो खाली हाथ नहीं जाएंगे। आप की पसंद की कोई न कोई किताब आपको मात्र 10 रुपये में भी मिल जाएगी। इस स्टोर से होने वाली कमाई से 12 बालवाड़ियों को फाइनेंशली सपोर्ट किया जाता है, जहां तीन से 6 साल के बच्चों को स्कूलों के लिए तैयार किया जाता है।



पढ़ने वाली पहली पीढ़ी एक दशक से इस स्टोर में वॉलंटियर नीरू टंडन (69) का कहना है कि अब हमारी उम्र हो गई है। ऐसे में हम सब कुछ नहीं कर सकते है। कई यंग स्टूडेंट्स और विद्वान हमारे साथ जुड़े हुए है। जिनकी वजह से यहां कभी किताबों की कमी नहीं होती। 77 साल की रिटायर्ड रेडियोलॉजिस्ट डॉ. करुणा तनेजा बताती है कि यह बुक स्टोर उनके डेली रूटीन का हिस्सा बन गया है। बालवाड़ी में पढ़ने वाले कई बच्चे अपने घर परिवार की पहली पीढ़ी है, जिन्होंने अपने हाथों से किताबें पकड़ी हैं।



समाज को कुछ वापस देने की पहल गीता बंसल (64) कहती हैं कि यहां हर कोई अलग-अलग मकसद से आता है। किसी को पढ़ने की आदत यहां खींच से लाती है, तो कोई समाज को कुछ उपत देने के मकसद से यहां आता है। मैं यहां एक बार किताबें डोनेट करने आई थी और मुझे यहां पूरा का पूरा खजाना मिल गया। अब मैं वहां से किताबें खरीदती हुं और अपने करीबी लोगों को गिफ्ट करती हूं। आज की 'स्कीन वाली दुनिया' में खुद को मोबाइल, टीवी और कायूटर स्क्रीन से कुछ समय के लिए दूर रखना बुहत जरूरी हो गया है।



भविष्य बदलने का मौका डॉ. करुणा तनेजा के अनुसार, यहां से किताब खरीदने वालों के लिए यही सबसे बड़ा रिवॉर्ड होता है कि वह बहुत ही कम कीमत देकर अच्छी किताबों से नॉलेज प्राप्त करते है और उनकी चुकाई हुई छोटी सी रकम से कई बच्चों का भविष्य तैयार हो रहा है। डॉ. तनेजा कहती हैं, जब आप यहां से किताब खरीदते हैं, वो आप सिर्फ उस किताब की कहानी नहीं पढ़ते, आप हर उस बच्चे को आगे चलकर अपनी कहानी लिखने का एक मौका देते हैं, जिनके घर में कभी किसी ने किताब को छुआ तक नहीं है।

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