क्या कोई मशीन खुद यह तय कर सकती है कि उसे कैसे सीखना है? यह अब हकीकत बन गया है। वैज्ञानिकों ने ऐसा AI सिस्टम बनाया है, जो खुद के सीखने के नियम बना सकता है। यह काम किया है जूनह्योक ओह (Junhyuk Oh) और उनकी टीम ने, जिसमें डीपमाइंड और मिशिगन यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स शामिल थे। पूरी रिसर्च साइंस जर्नल नेचर में छपी हुई है। जोएल लेहमन (Joel Lehman) ने कहा कि यह खोज AI के विकास में एक ऐतिहासिक कदम है, लेकिन डर भी। अब तक इंसान मशीनों को बताते थे कि उन्हें कैसे सीखना है। लेकिन ओह की टीम ने एक मेटा-लर्निंग तकनीक का इस्तेमाल किया, जिसमें एक टीचर AI दूसरे स्टूडेंट AI को सिखाता है कि उसे कैसे सीखना चाहिए। टीचर AI यानी मेटा नेटवर्क नए तरीके खोजता है, और स्टूडेंट AI यानी बेस लेयर उन तरीकों को आजमाता है, जैसे बच्चे को विडियो गेम खेलना सिखाना।
शोधकर्ताओं ने इन एजेंट्स को Atari वीडियो गेम्स पर ट्रेन किया। नतीजा यह हुआ कि मशीन ने खुद एक नया सीखने का तरीका खोज लिया, जो इंसानों की ओर से बनाए गए एल्गोरिद्म से भी बेहतर निकला। सबसे बड़ी बात यह रही कि यह AI न सिर्फ उन्हीं गेम्स में अच्छा था जिन पर इसे ट्रेन किया गया था, बल्कि पहली बार देखे गए गेम्स में भी शानदार प्रदर्शन किया। लेहमन ने कहा, 'यह शुरुआत है उस दौर की जब AI खुद अपने डिजाइन तैयार करेगा। यह उत्साहजनक भी है और चिंताजनक भी।'
क्या मायने हैं इस रिसर्च केअब तक मशीनें वही करती थीं जो इंसान उन्हें सिखाते थे, लेकिन इस तकनीक के बाद वे खुद अपने सीखने के तरीके बना सकती हैं। इसका मतलब यह हुआ कि आने वाले वक्त में AI इंसानों की तरह खुद तय करेगा कि क्या सही है, क्या नहीं। इससे विज्ञान, स्वास्थ्य, रोबॉटिक्स और क्लाइमेट जैसे क्षेत्रों में नई रिसर्च की गति कई गुना बढ़ सकती है। जैसे, कोई मशीन खुद यह सीख सकती है कि दवा की कौन सी रासायनिक संरचना किसी बीमारी पर सबसे असरदार होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि यह विकास खतरनाक भी हो सकता है। अगर मशीनें अपने एल्गोरिद्म खुद बनाने लगीं, तो उन पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो सकता है। यह डर भी है कि कहीं यह तकनीक इंसानी सोच से आगे न निकल जाए।
जानने लायक 5 तकनीकी बातें
शोधकर्ताओं ने इन एजेंट्स को Atari वीडियो गेम्स पर ट्रेन किया। नतीजा यह हुआ कि मशीन ने खुद एक नया सीखने का तरीका खोज लिया, जो इंसानों की ओर से बनाए गए एल्गोरिद्म से भी बेहतर निकला। सबसे बड़ी बात यह रही कि यह AI न सिर्फ उन्हीं गेम्स में अच्छा था जिन पर इसे ट्रेन किया गया था, बल्कि पहली बार देखे गए गेम्स में भी शानदार प्रदर्शन किया। लेहमन ने कहा, 'यह शुरुआत है उस दौर की जब AI खुद अपने डिजाइन तैयार करेगा। यह उत्साहजनक भी है और चिंताजनक भी।'
क्या मायने हैं इस रिसर्च केअब तक मशीनें वही करती थीं जो इंसान उन्हें सिखाते थे, लेकिन इस तकनीक के बाद वे खुद अपने सीखने के तरीके बना सकती हैं। इसका मतलब यह हुआ कि आने वाले वक्त में AI इंसानों की तरह खुद तय करेगा कि क्या सही है, क्या नहीं। इससे विज्ञान, स्वास्थ्य, रोबॉटिक्स और क्लाइमेट जैसे क्षेत्रों में नई रिसर्च की गति कई गुना बढ़ सकती है। जैसे, कोई मशीन खुद यह सीख सकती है कि दवा की कौन सी रासायनिक संरचना किसी बीमारी पर सबसे असरदार होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि यह विकास खतरनाक भी हो सकता है। अगर मशीनें अपने एल्गोरिद्म खुद बनाने लगीं, तो उन पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो सकता है। यह डर भी है कि कहीं यह तकनीक इंसानी सोच से आगे न निकल जाए।
जानने लायक 5 तकनीकी बातें
- मेटा-ग्रेडिएंट तकनीक पर यह AI सिस्टम काम करता है। यह तकनीक बताती है कि अगर सीखने के नियमों में थोड़ा बदलाव किया जाए, तो मशीन की समझ कैसे बेहतर होगी।
- यह AI सिर्फ उन्हीं गेम्स में नहीं, बल्कि पहली बार देखे गए नए गेम्स में भी बेहतरीन प्रदर्शन करता है। यह जनरल इंटेलिजेंस की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।
- लेहमन ने माना कि यह सिस्टम अभी पूरी तरह खुद को डिजाइन करने वाला AI नहीं है। यह सिर्फ तयशुदा दायरे में सबसे अच्छा तरीका ढूंढने में सक्षम है।
- आगे इसके विकास की 3 दिशाएं बताई गई हैं। पहला, यह जनरेटिव AI जैसे कोड लिखने वाले मॉडल बना सकता है। दूसरा, इवोल्यूशनरी एल्गोरिद्म से जैविक विकास जैसे सिस्टम डिवेलप हो सकता है। तीसरा, मेटा-लर्निंग से खुद सीखने की प्रक्रिया को सुधारते हुए इंसानी हस्तक्षेप कम कर सकता है।
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