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चीन की चाल

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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने अपने बयान में पहलगाम के अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाने की बात कही है, लेकिन स्टेटमेंट देखकर लगता है कि इससे बात नहीं बनेगी। दरअसल, जब तक स्थायी सदस्य के रूप में चीन आतंक को सहारा देने वाले पाकिस्तान को बचाता रहेगा, तब तक किसी तरह के बदलाव की उम्मीद करना बेमानी है। कमजोर भाषा: पहलगाम पर UNSC के बयान की भाषा बेहद कमजोर रही, 2019 के पुलवामा अटैक के बाद आए बयान से भी कमजोर। तब सभी देशों से भारत सरकार के साथ सक्रिय रूप से सहयोग करने का आह्वान किया गया था। इस बार की अपील सभी संबंधित अधिकारियों के साथ सहयोग करने की है। भारत सरकार शब्द होने से पाकिस्तान पर ज्यादा दबाव पड़ता। लेकिन, उसे बचाने के लिए एक बार फिर चीन आगे आ गया। दोहरा रवैया: आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान सुधर नहीं सकता, अतीत ने कम से कम इतना तो सिखा दिया है, लेकिन चीन का रवैया भी कम सवालों के घेरे में नहीं। दुर्भाग्य से उसकी आतंकवाद को लेकर कोई एक नीति नहीं है। पाकिस्तान में जब चीनी नागरिकों को निशाना बनाया जाता है, तब चीन को उसमें आतंकवाद नजर आता है, लेकिन मौका मिलने पर वह मसूद अजहर जैसे आतंकियों को बचाने से गुरेज नहीं करता। वीगर मुस्लिमों का मसला: ऐसा नहीं है कि चीन मुस्लिमों का रहनुमा है। उसने अपने शिनच्यांग प्रांत को दुनिया की सबसे बड़ी जेल में तब्दील कर रखा है। चीनी संस्कृति का ज्ञान देने के नाम पर वीगर मुस्लिमों को डिटेंशन कैंपों में रखा जाता है। इसके खिलाफ कई मानवाधिकार संगठन आवाज उठा चुके हैं, लेकिन चीन का कहना है कि उसकी लड़ाई आतंकवाद और अलगाववाद के खिलाफ है। दुर्भाग्य से, बात जब भारत की आती है, तो आतंकवाद को लेकर पेइचिंग का नजरिया बदल जाता है। कमजोर पड़ता पाकिस्तान: भारत-चीन के रिश्ते उतार-चढ़ाव भरे रहे हैं और इसकी बुनियाद में सीमा विवाद है। पाकिस्तान को वह भारत को परेशान करने के टूल के रूप में इस्तेमाल करता आया है। हालांकि नई दिल्ली को अब इस बारे में स्पष्ट बात करनी चाहिए। एक तरफ कैलाश मानसरोवर यात्रा फिर शुरू होने जा रही है, जो रिश्तों में बेहतरी दिखाती है और दूसरी ओर पाकिस्तान का बचाव - चीन दोहरी चाल नहीं चल सकता। पहलगाम की तटस्थ जांच के लिए पाकिस्तान का प्रस्ताव बताता है कि वह कमजोर और अलग-थलग पड़ रहा है। भारत के पक्ष को दुनिया बेहतर ढंग से समझ रही है। यही बात चीन को भी समझानी होगी।
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