सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया पर फिलहाल रोक लगाने से इनकार कर दिया है। हालांकि, सुनवाई के दौरान अहम बात कही। अदालत ने कहा कि पहचान के लिए आधार कार्ड, वोटर कार्ड और राशन कार्ड को शामिल किया जाए। अब इस मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को होगी।
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के निर्वाचन आयोग के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने निर्वाचन आयोग से कहा कि यदि उसे नागरिकता की जांच करनी थी, तो उसे पहले ही कदम उठाना चाहिए था, अब थोड़ी देर हो चुकी है। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण में नागरिकता के मुद्दे को क्यों उठाया जा रहा है, जबकि यह गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है।
निर्वाचन आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी, के. के. वेणुगोपाल और मनिंदर सिंह ने दलीलें पेश कीं। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत भारत में मतदाता बनने के लिए नागरिकता की जांच आवश्यक है। वहीं, याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने तर्क दिया था कि इस प्रक्रिया से लगभग 7.9 करोड़ नागरिक प्रभावित होंगे और यहां तक कि मतदाता पहचान पत्र और आधार कार्ड पर भी विचार नहीं किया जा रहा था।
सुप्रीम कोर्ट का यह अंतरिम आदेश बिहार में चल रही वोटर वेरिफिकेशन प्रक्रिया के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है। जहां एक ओर अदालत ने इस प्रक्रिया को जारी रखने की अनुमति दी है, वहीं पहचान पत्रों को लेकर दिए गए निर्देशों से उन लाखों लोगों को राहत मिल सकती है, जिनके पास नागरिकता साबित करने के लिए अन्य दस्तावेज नहीं थे।
यह मामला राजनीतिक रूप से भी काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि राष्ट्रीय जनता दल (RJD) सांसद मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस (TMC) सांसद महुआ मोइत्रा और कांग्रेस के के सी वेणुगोपाल समेत कई विपक्षी नेताओं ने इस प्रक्रिया को चुनौती दी है। इन नेताओं ने निर्वाचन आयोग के आदेश को मनमाना बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की थी।
अब सभी की निगाहें 28 जुलाई पर टिकी हैं, जब सुप्रीम कोर्ट इस मामले में आगे की सुनवाई करेगा और यह तय करेगा कि बिहार के लाखों मतदाताओं के भविष्य पर इस फैसले का क्या अंतिम प्रभाव पड़ेगा।