महाराष्ट्र की राजनीति में शनिवार को एक बेहद भावनात्मक और ऐतिहासिक दृश्य सामने आया, जब दो दशकों की दूरी और सियासी तल्खियों को पीछे छोड़ते हुए ठाकरे बंधु—उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे—एक ही मंच पर एक साथ नजर आए। ‘मराठी गौरव’ के नाम पर आयोजित इस रैली में दोनों भाइयों की एकता ने समर्थकों की आंखें नम कर दीं और दिलों में उम्मीद जगा दी कि शायद अब मराठी अस्मिता को एक नई मजबूती मिलेगी।
लेकिन दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी और महायुति गठबंधन के नेताओं ने इस मुलाकात को भावनाओं से नहीं, बल्कि सियासत की रणनीति से जोड़कर देखा। उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने तीखा कटाक्ष करते हुए कहा, “राज ने जहां मराठी भाषा के प्रति सच्ची संवेदनशीलता दिखाई, वहीं उद्धव का भाषण ईर्ष्या, कटुता और सत्ता की भूख से भरा हुआ था।”
“यह सत्ता की तलाश, मराठी जनता की नहीं”
शिंदे ने यह भी आरोप लगाया कि यह रैली मराठी मानुष की आवाज बनने के बजाय उद्धव की सत्ता प्राप्ति की व्यक्तिगत कोशिश में बदल गई है। उन्होंने याद दिलाया कि 2019 में उद्धव ने भाजपा से नाता तोड़कर मराठी अस्मिता और बालासाहेब की विचारधारा के साथ सीधा धोखा किया था।
राज्य मंत्री आशीष शेलार ने इस रैली को “भाई-भाई के मेल” का तमाशा बताते हुए कहा, “यह मराठी भाषा की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि शिवसेना (UBT) की डूबती नैया को बचाने की सियासी कोशिश थी।”
रामदास अठावले की दो टूक—“हिंदी विरोध ठीक नहीं”
केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने भी साफ शब्दों में कहा, “मराठी से प्रेम होना अच्छी बात है, लेकिन हिंदी विरोधी भावना समाज में ज़हर घोल सकती है। मारपीट और डर दिखाकर कोई भाषा किसी के दिल में नहीं बसाई जा सकती।”
NSCI डोम में गूंजे मराठी स्वाभिमान के नारे
मुंबई के NSCI डोम में आयोजित इस जनसभा में हजारों की संख्या में समर्थक पहुंचे। मंच पर खड़े ठाकरे बंधुओं ने भाजपा पर एक सुर में हमला बोला। उद्धव ने गर्व से एलान किया, “अब हम साथ आए हैं और साथ ही रहेंगे। महाराष्ट्र और मुंबई की सत्ता हम मिलकर हासिल करेंगे।”
राज ठाकरे ने चुटकी लेते हुए कहा, “जो काम बाला साहेब नहीं कर पाए, वो फडणवीस ने कर दिखाया—हमें एक कर दिया।” इस बयान पर सभा में ठहाके और तालियों की गूंज सुनाई दी।
हिंदी बनाम मराठी पर फिर से गरमाई बहस
दोनों नेताओं ने भाजपा पर हिंदी को थोपने और मराठी पहचान को कमजोर करने के गंभीर आरोप लगाए। राज ठाकरे ने कहा, “अगर हिंदी भाषी राज्य अब भी आर्थिक रूप से पिछड़े हैं, तो फिर हिंदी ने उन्हें क्या तरक्की दी? हम किसी भाषा के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन मराठी को पीछे धकेलना बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।”
क्या बदलेगा महाराष्ट्र का सियासी गणित?
शिवसेना (UBT) और एमएनएस की यह एकजुटता BMC चुनाव से पहले एक बड़ा सियासी संदेश बनकर उभरी है। जहां उद्धव की पार्टी लोकसभा में कमजोर दिखी, वहीं एमएनएस को हाल के विधानसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं मिली। इस मंच साझा करने को बालासाहेब ठाकरे की विरासत को दोबारा मजबूत करने और मराठी वोटबैंक को एकजुट करने की रणनीति माना जा रहा है।
फडणवीस ने बताया ‘रुदाली कार्यक्रम’
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने रैली पर तंज कसते हुए कहा, “अगर ठाकरे भाइयों को मिलाने का श्रेय मुझे मिल रहा है, तो शायद बालासाहेब की भी मुझ पर कृपा है।” उन्होंने इस पूरे कार्यक्रम को “रुदाली कार्यक्रम” कहकर न केवल मज़ाक उड़ाया, बल्कि पूछा कि “25 साल तक मुंबई नगर निगम आपके पास रही, आपने मराठी भाषा के लिए क्या किया?”
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