New Delhi, 14 अगस्त . भूकंप प्रकृति की सबसे विनाशकारी और अप्रत्याशित आपदाओं में से एक है, जो पल भर में न केवल जीवन को खत्म कर देता है, बल्कि पर्यावरण और सभ्यता को भी तहस-नहस कर सकता है. भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है, देश में कई बार ऐसे मौके आए जब भूकंप ने प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ा और अपने पीछे छोड़ दिए तबाही के निशान, जो आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं.
15 अगस्त 1950 वो तारीख थी, जब देश आजादी की तीसरी सालगिरह मना रहा था. उस दौरान भारत के असम और तिब्बत क्षेत्र में 8.6 तीव्रता का भूकंप आया. यह भूकंप न केवल आजाद भारत का पहला बड़ा भूकंप था, बल्कि 20वीं शताब्दी के सबसे शक्तिशाली भूकंपों में से एक था.
इसकी तीव्रता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विनाशकारी भूकंप ने हजारों लोगों की जान ले ली, गांवों को मलबे में बदल दिया और प्रकृति के संतुलन को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया.
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के अनुसार, 15 अगस्त 1950 को असम में आए भूकंप की तीव्रता 8.6 थी, जिससे तिब्बत भी बुरी तरह प्रभावित हुआ. यह 20वीं सदी का सबसे बड़ा भूकंप था और यह दो महाद्वीपीय प्लेटों के टकराव के कारण हुआ, जिसने इसे और भी विनाशकारी बना दिया.
भूकंप का प्रभाव इतना खतरनाक था कि मिश्मी और अबोरी पहाड़ियों में 70 से अधिक गांव पूरी तरह नष्ट हो गए. साथ ही असम में अनुमानित 1,500 से अधिक लोग मारे गए, जबकि तिब्बत में 4,800 से अधिक मौतें दर्ज की गईं. लेकिन मृतकों की संख्या को 20 से 30 हजार के बीच बताया जाता है.
इसके अलावा, भूकंप ने ब्रह्मपुत्र नदी और उसकी सहायक नदियों के प्रवाह को भी बाधित किया, जिससे बाढ़ भी आ गई थी. भूकंप का उपकेंद्र तिब्बत के रीमा क्षेत्र और असम की मिश्मी हिल्स में होने की वजह से मिश्मी पहाड़ियों और आसपास के जंगलों में भूस्खलन और चट्टानों के गिरने से भी भारी नुकसान हुआ था. हालात ऐसे थे कि भूकंप ने प्रकृति का संतुलन बिगाड़ दिया और इसका सीधा प्रभाव पहाड़ों और नदियों पर पड़ा.
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, देश ने पिछले कुछ सालों में कई बड़े विनाशकारी भूकंप झेले हैं, जिनमें मृतकों की संख्या हजारों में है. भारत के भूकंपीय मानचित्र के मुताबिक, देश का 59 प्रतिशत हिस्सा मध्यम से गंभीर भूकंप के जोखिम में है, जहां तीव्रता 7 या उससे अधिक के झटके आ सकते हैं. हिमालय क्षेत्र में 8.0 या उससे अधिक तीव्रता वाले बड़े भूकंप का खतरा बना रहता है. भारत में 1897 (शिलांग, 8.7), 1905 (कांगड़ा, 8.0), 1934 (बिहार-नेपाल, 8.3) और 1950 (असम-तिब्बत, 8.6) जैसे चार बड़े भूकंप आ चुके हैं.
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एफएम/जीकेटी
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