Next Story
Newszop

पेट चीरे, स्तन काटे, नंगा कर घुमाया. पंजाब से पूर्वोत्तरˈ तक महिलाओं के शरीर पर बनाए चाँद-तारे का निशान, रेप-धर्मांतरण की वे अनकही दास्ताँ जो हैं विभाजन का स्याह सत्य

Send Push

1947 का भारत विभाजन इतिहास का एक भयानक अध्याय था। इस त्रासदी का एक कड़वा सच है औरतों पर हुई सुनियोजित और संगठित हिंसा।

कभी-कभी यह सवाल परेशान करता है कि अगर विभाजन इतना खूनी होना था, तो हुआ ही क्यों?

जमीन के टुकड़ों का बँटवारा कैसे अचानक नरसंहार और जातीय हिंसा में बदल गया? क्या हासिल करना था और क्या हासिल हुआ?

1947 का भारत विभाजन सिर्फ राजनीतिक नक्शे की लकीर नहीं था, बल्कि इतिहास का एक भयानक अध्याय था। 2 करोड़ से ज्यादा लोग बेघर हुए, करीब 20 लाख लोग सिर्फ दो महीनों में मारे गए और अनगिनत घर, गाँव, रिश्ते, और समुदाय टूट गए। लेकिन इस त्रासदी का एक और सच है, वो है औरतों पर हुई सुनियोजित और संगठित हिंसा।

उस समय 75,000 से 1,00,000 तक की संख्या में महिलाओं का अपहरण हुआ। यह हिंसा अचानक नहीं, बल्कि जानबूझकर, धार्मिक नफरत और पितृसत्तात्मक सोच से प्रेरित थी। हिंदू और सिख महिलाओं का मुस्लिम गिरोहों ने जबरन अपहरण किया। उनका रेप किया गया, गर्भवती किया गया, विरोध करने पर मार डाला गया, जलाया गया, जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया, निकाह पढ़ा दिया गया, और कई को सेक्स स्लेव बनाकर रखा गया। गर्भवती महिलाओं के पेट चीर दिए गए और भ्रूण को मार दिया गया।

ट्रेनों को रोका गया, महिलाओं की लाशें नग्न अवस्था में, विकृत हालत में, पटरियों पर फेंकी गईं। अमृतसर और लाहौर में महिलाओं को सार्वजनिक रूप से निर्वस्त्र घुमाया गया, जिंदा जलाया गया, उनके जननांग काट दिए गए। इतना ही नहीं हिंदू महिलाओं के शरीर पर इस्लामी चाँद-तारे के निशान बना दिए गए।

जब पंजाब में इस हिंसा की खबरें फैलीं, तो कई सिख परिवारों ने सामूहिक आत्महत्या और ‘ऑनर किलिंग’ का रास्ता अपनाया। रावलपिंडी के थुआ खालसा गाँव में पूरी-की-पूरी महिलाओं ने कुएँ में कूदकर जान दे दी, ताकि बलात्कार से बच सकें। कई पिता, भाई और चाचा ने अपने घर की बेटियों और बहनों की गला काटकर हत्या कर दी।

बंगाल, असम और त्रिपुरा ज्यादा चर्चा में नहीं आए, लेकिन वहाँ भी हालात उतने ही भयावह थे। बंगाल में, खासकर बरिसाल और खुलना में, जमींदार घरानों की लड़कियों का अपहरण हुआ। बिनादास नाम की एक महिला ने बताया कि कैसे उन्हें और उनकी बहन को उठा लिया गया। उनकी बहन कभी वापस नहीं मिली।

15 साल से कम उम्र की लड़कियों को घरेलू नौकर या सेक्स वर्कर बनाकर सीमा पार ले जाया गया, कुछ को चिटगाँव और रंगपुर तक बेच दिया गया। एक और महिला, अनीमा चक्रवर्ती, 1951 में ढाका के एक कोठे में पाई गई। कई लड़कियों का दिन में 40-60 बार रेप किया जाता था।

1947 के सिलहट जनमत संग्रह के बाद हिंदू बंगाली अचानक ‘विदेशी’ हो गए। मुस्लिम लीग के गुंडों ने हिंदू घरों पर हमले किए, औरतों को निशाना बनाया। करीमगंज की एक बुजुर्ग महिला ने कहा, “हम भूसे के ढेर में छुप गए, लेकिन वे लड़कियों को उठा ले गए।” एक और महिला ने गवाही दी, “हम सिर्फ दो कपड़ों के साथ निकले थे, लेकिन बॉर्डर पर मेरी बहन छिन गई।”

1950 में ढाका, बरिसाल, और चिटगाँव में फिर दंगे हुए। मंदिरों में औरतों का सामूहिक बलात्कार, अंग-भंग, और जबरन धर्म परिवर्तन किया गया। कई महिलाएँ असम के शरणार्थी कैंपों में आईं। कुछ गर्भवती थीं, कुछ का शरीर काटा-पीटा गया था। बहुत सी महिलाओं ने अपनी चुप्पी कभी नहीं तोड़ी।

त्रिपुरा और चकमा जनजाति की औरतें, जो कोमिल्ला और चिटगाँव से भागकर आईं, वो रास्ते में गैंग रेप की शिकार हुईं। अगरतला के पास के शरणार्थी कैंप में एक 13 साल की चकमा लड़की ने गवाही दी कि उसके पिता ने उसे जहर देने की कोशिश की ताकि वह हमलावरों के हाथ न लगे, वह बच गई, लेकिन उसके पिता मर गए।

इन औरतों की कहानियाँ अक्सर इतिहास की किताबों में नहीं मिलतीं। लेकिन उनका मौन आज भी सबसे ऊँची आवाज में यह याद दिलाता है कि विभाजन सिर्फ सीमाओं का बँटवारा नहीं था, यह औरतों के शरीर पर लिखा गया खून का इतिहास था।

मूल रूप से यह रिपोर्ट अंग्रेजी में मीता नाथ बोरा ने लिखी है।

Loving Newspoint? Download the app now