गाली देना एक ऐसा व्यवहार है जो दुनिया के हर कोने में किसी न किसी रूप में मौजूद है। लेकिन जब बात आती है यह पूछने की कि “किस धर्म के लोग सबसे ज़्यादा गालियाँ देते हैं?” – तो यह सवाल न केवल संवेदनशील है, बल्कि काफी भ्रामक भी है। ऐसा कोई धर्म नहीं है जो अपने अनुयायियों को गाली देने की शिक्षा देता हो। फिर भी, समाज में गाली-गलौज एक आम व्यवहार बनता जा रहा है, और इसके पीछे कारण व्यक्ति की परवरिश, माहौल, शिक्षा, और सामाजिक प्रभाव हैं — न कि उसका धर्म।
1. धर्म क्या सिखाते हैं?
- हिंदू धर्म: ‘अहिंसा परमो धर्मः’ यानी हिंसा (शारीरिक या वाचिक) से बचना ही सबसे बड़ा धर्म है। गाली देना वाचिक हिंसा है।
- इस्लाम: इस्लाम में साफ शब्दों में कहा गया है कि बुरे शब्दों का प्रयोग करना, गुस्से में बोलना, और दूसरों को अपमानित करना हराम है।
- ईसाई धर्म: बाइबिल सिखाती है कि “तुम्हारी भाषा प्रेम, शांति और क्षमा से भरी होनी चाहिए”।
- सिख धर्म: गुरु ग्रंथ साहिब में गुस्से और बुरे बोलों से दूर रहने की शिक्षा दी गई है।
- बौद्ध धर्म: ‘सम्यक वाक्’ यानी सही बोलचाल की शिक्षा दी जाती है — जिसमें गाली का कोई स्थान नहीं।
2. असल में गाली कौन देता है?
गाली किसी धर्म से नहीं आती — यह सामाजिक परिवेश, अभिव्यक्ति की असफलता, या गुस्से की गलत दिशा का परिणाम होती है।
- जिन लोगों की परवरिश गुस्से और अपमान के माहौल में होती है, उनके लिए गाली आम भाषा बन जाती है।
- कुछ क्षेत्रों या समुदायों में गाली को “स्टाइल” या “मर्दानगी” से जोड़कर देखा जाता है, जो एक मानसिक भ्रम है।
- सोशल मीडिया और फिल्मों में गाली को ग्लैमराइज़ किया जा रहा है, जिससे युवा प्रभावित हो रहे हैं।
3. क्या किसी धर्म विशेष को दोष देना सही है?
बिलकुल नहीं। अगर कोई कहता है कि “फलां धर्म के लोग ज़्यादा गालियाँ देते हैं”, तो यह साफ तौर पर भेदभाव, अज्ञानता, और सांप्रदायिक सोच को दर्शाता है। गाली देना एक व्यक्तिगत आदत है, न कि धार्मिक पहचान।
4. समाधान क्या है?
- शिक्षा और संस्कार से बच्चों को शुरू से ही संयमित भाषा सिखाना होगा।
- सोशल मीडिया और मनोरंजन में गाली को “cool” दिखाना बंद होना चाहिए।
- हर धर्म के धार्मिक स्थल और धार्मिक गुरु शब्दों की शुद्धता पर विशेष बल दें।
- गाली देने वालों को धर्म से नहीं, उनके आचरण से पहचाना जाए।
निष्कर्ष:
कोई भी धर्म गाली देना नहीं सिखाता। इसलिए यह कहना कि “किस धर्म के लोग सबसे ज़्यादा गाली देते हैं”, एक भ्रामक और विभाजनकारी विचार है। गाली व्यक्ति की संस्कृति, शिक्षा, और आदत का परिणाम है, धर्म का नहीं। समाज को एकजुट करने के लिए ज़रूरी है कि हम ऐसी सोच से ऊपर उठें और एक-दूसरे की भाषा और भावना का सम्मान करें।
You may also like
वाराणसी: बीएचयू प्रोफेसर पर हमला करने वाला मुख्य आरोपित मुठभेड़ में गिरफ्तार
Aaj ka Ank Rashifal 13 August 2025 : अंक ज्योतिष राशिफल प्यार, करियर और सेहत में कौन करेगा बाजी मार?
Aaj ka Mesh Rashifal 13 August 2025 : मेष राशि वालों के लिए आज का दिन लाएगा खुशियों की बारिश, जानें पूरी भविष्यवाणी
तेलंगाना में भारी बारिश की चेतावनी, सभी विभागों के कर्मचारियों की छुट्टियां रद्द
पाकिस्तान के खिलाफ शतक ठोककर Shai Hope ने की Brian Lara के रिकॉर्ड की बराबरी, इस मामले में कर लिया है पहला स्थान शेयर