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दिवाली का महत्व: त्रेता युग की पहली दिवाली की कथा

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दिवाली की कथा

दिवाली की कथा

त्रेता युग की दिवाली कथा: कार्तिक मास की अमावस्या का दिन विशेष महत्व रखता है। इस दिन हर साल दिवाली का पर्व मनाया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस अवसर पर घरों में दीप जलाए जाते हैं और मां लक्ष्मी तथा भगवान गणेश की पूजा की जाती है।

इस दिन देवी लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा से जीवन में समृद्धि आती है। दिवाली का पर्व रामायण से गहराई से जुड़ा हुआ है। आइए जानते हैं कि रामायण के अनुसार दिवाली का असली अर्थ क्या है और त्रेता युग की पहली दिवाली की कहानी क्या है।

दिवाली कब है? (Diwali 2025 कब है?)

पंचांग के अनुसार, इस वर्ष दिवाली 20 अक्टूबर को कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को दोपहर 3:44 बजे शुरू होगी और इसका समापन 21 अक्टूबर की शाम 5:54 बजे होगा।

रामायण के अनुसार दिवाली का अर्थ

रामायण के अनुसार, दिवाली का असली अर्थ बुराई पर अच्छाई और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। यह पर्व भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास के बाद लंका के राजा रावण पर विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटने का उत्सव है। अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत के लिए नगर को दीपों से सजाया, जिससे दिवाली मनाने की परंपरा शुरू हुई।

त्रेता युग की दिवाली की कथा

रामायण में वर्णित है कि प्रभु राम के वनवास के दौरान रावण ने माता सीता का अपहरण किया। प्रभु राम ने रावण का वध कर माता सीता को पुनः प्राप्त किया। लंका में विजय के बाद, प्रभु राम ने विभीषण को लंका का राज सौंपा और अयोध्या लौटे। जब अयोध्या के निवासियों को प्रभु राम की विजय और लौटने की सूचना मिली, तो पूरे नगर में खुशी की लहर दौड़ गई।

अयोध्यावासियों ने अपने राजा के स्वागत के लिए दीप जलाए और नगर को सजाया। लोगों ने पटाखे फोड़े और देवी-देवताओं ने पुष्पों की वर्षा की। जब प्रभु राम अयोध्या पहुंचे, तो उन्होंने सभी को गले लगाया और नगरवासियों ने उनका फूलों से स्वागत किया। जिस दिन प्रभु राम अयोध्या लौटे, वह कार्तिक मास की अमावस्या का दिन था। तभी से दिवाली का पर्व मनाने की परंपरा शुरू हुई।

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