सोना और चांदी की कीमतें पिछले दो सालों में दोगुनी हो गई हैं। अक्टूबर 2023 में सोना $2,000 और चांदी $23 प्रति औंस थी। शानिवार अक्टूबर 2025 सोना करीब $4,120 और चांदी $49 पर है। लेकिन पिछले हफ्ते दोनों में जबरदस्त गिरावट देखने को मिली जहां सोना (gold) 7% और चांदी (silver) 11% पर है। अब सवाल है कि क्या ये रुकावट है या फिर गिरावट की बस शुरुआत?
चांदी का मार्केट और सप्लाई की दिक्कत
सोना और चांदी दोनों की कीमतें इस साल बढ़ीं क्योंकि दुनिया में इकनॉमिक अनसर्टेनटी और प्रेसिडेंट ट्रंप टैरिफ नीतियों से डर था। चांदी की कीमतें इसलिए भी बढ़ीं क्योंकि दुनिया भर में सप्लाई शॉर्टेज है। ग्रीनलैंड इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट के अनंत जानिया ने ब्लूमबर्ग को बताया कि लंदन ट्रेडिंग हब में चांदी का स्टॉक लगभग खत्म हो गया है, जिससे लिक्विडिटी बहुत टाइट हो गई। इसके साथ ही, यूएस गवर्नमेंट शटडाउन के कारण कॉमोडिटी फ्यूचर्स ट्रेडिंग कमीशन (Commodity Futures Trading Commission) की साप्ताहिक रिपोर्ट जारी नहीं हुई, जिससे ट्रेडर्स को सही डेटा नहीं मिला और मार्केट में अनिश्चितता बढ़ी।
बैकवर्डेशन और ETF (Backwardation and ETF )चांदी की फिजिकल डिमांड इतना ज्यादा था कि स्पॉट मार्केट की कीमतें फ्यूचर्स मार्केट से ऊपर चली गई। इसे बाजार की भाषा में बैकवर्डेशन कहते हैं। इसका असर सिल्वर ETF (Silver ETF) पर भी पड़ा। कई बार इन्वेस्टर को 6% या उससे ज्यादा प्रीमियम पर ETF यूनिट्स खरीदनी पड़ीं। उद्योग रिपोर्ट्स के अनुसार, चांदी की सप्लाई की कमी अबी भी जारी है। लगातार पांचवें साल डिमांड 1.20 बिलियन औंस सप्लाई 1.05 बिलियन औंस से ज्यादा रहने वाली है। इसलिए ये गिरावट चांदी के लिए एक टेम्पररी ब्रेक जैसी लगती है। कीमतें आगे भी बढ़ सकती हैं अगर हालात नहीं बदले।
क्यों पड़ी सोने की चमक थोड़ी फीकीसोना हमेशा एक सेफ हेवन एसेट माना जाता है। लेकिन जब रिस्क कम होता है, पैसा शेयर मार्केट जैसे रिस्की एसेट्स में चला जाता है। इस बार की गिरावट प्रॉफिट बुकिंग, डॉलर इंडेक्स की मजबूती, और ट्रंप के चाइना ट्रेड टॉक्स (China trade talks) में सुधार की वजह से आई। अगर व्यापारिक माहौल सुधरता है, तो सोना-चांदी दोनों की चमक थोड़ी और कम हो सकती है। लेकिन अगर US debt बढ़ा, dollar कमजोर हुआ, या सेंट्रल बैंक्स ने सोना खरीदना जारी रखा, तो सोने को फिर से सपोर्ट मिल सकता है।
मार्केट में करेक्शन जरूरी है
किस वजह से सोना-चांदी ऊपर या नीचे जाएंगे, यह कोई पक्का नहीं बता सकता। दोनों मेटल्स ने बहुत तेज़ी दिखाई है और अब हर इन्वेस्टर की वॉचलिस्ट में हैं। लेकिन जितनी तेज़ी से दाम बढ़ते हैं, उतनी ही जल्दी करेक्शन भी आता है। आने वाले महीनों में उतार-चढ़ाव और स्थिरता का दौर देखने को मिल सकता है।
निवेशकों के लिए सलाह
कीमतें थोड़ी गिरने पर बहुत से लोग बाय द डिप सोचकर एंट्री लेना चाहते हैं। लेकिन हर किसी के लिए यह सही रणनीति नहीं है। संभावना है कि दाम कुछ और नीचे जाएं और फिर कुछ महीनों तक रेंज-बाउंड रहें। ऐसे समय में कई शॉर्ट-टर्म इन्वेस्टर्स निकल जाते हैं और बाद में आने वाली अगली रैली मिस कर देते हैं। आज भारत में सोना ₹1,22,200 प्रति 10 ग्राम और चांदी ₹1,48,730 प्रति किलो है। कल क्या रेट होगा, कोई नहीं जानता। फाइनेंशियल प्लैनर्स की मानें तो पोर्टफोलियो का 5-10% हिस्सा ही सोना-चांदी जैसे मेटल्स में लगाना चाहिए और वह भी लॉन्ग-टर्म व्यू से।
चांदी का मार्केट और सप्लाई की दिक्कत
सोना और चांदी दोनों की कीमतें इस साल बढ़ीं क्योंकि दुनिया में इकनॉमिक अनसर्टेनटी और प्रेसिडेंट ट्रंप टैरिफ नीतियों से डर था। चांदी की कीमतें इसलिए भी बढ़ीं क्योंकि दुनिया भर में सप्लाई शॉर्टेज है। ग्रीनलैंड इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट के अनंत जानिया ने ब्लूमबर्ग को बताया कि लंदन ट्रेडिंग हब में चांदी का स्टॉक लगभग खत्म हो गया है, जिससे लिक्विडिटी बहुत टाइट हो गई। इसके साथ ही, यूएस गवर्नमेंट शटडाउन के कारण कॉमोडिटी फ्यूचर्स ट्रेडिंग कमीशन (Commodity Futures Trading Commission) की साप्ताहिक रिपोर्ट जारी नहीं हुई, जिससे ट्रेडर्स को सही डेटा नहीं मिला और मार्केट में अनिश्चितता बढ़ी।
बैकवर्डेशन और ETF (Backwardation and ETF )चांदी की फिजिकल डिमांड इतना ज्यादा था कि स्पॉट मार्केट की कीमतें फ्यूचर्स मार्केट से ऊपर चली गई। इसे बाजार की भाषा में बैकवर्डेशन कहते हैं। इसका असर सिल्वर ETF (Silver ETF) पर भी पड़ा। कई बार इन्वेस्टर को 6% या उससे ज्यादा प्रीमियम पर ETF यूनिट्स खरीदनी पड़ीं। उद्योग रिपोर्ट्स के अनुसार, चांदी की सप्लाई की कमी अबी भी जारी है। लगातार पांचवें साल डिमांड 1.20 बिलियन औंस सप्लाई 1.05 बिलियन औंस से ज्यादा रहने वाली है। इसलिए ये गिरावट चांदी के लिए एक टेम्पररी ब्रेक जैसी लगती है। कीमतें आगे भी बढ़ सकती हैं अगर हालात नहीं बदले।
क्यों पड़ी सोने की चमक थोड़ी फीकीसोना हमेशा एक सेफ हेवन एसेट माना जाता है। लेकिन जब रिस्क कम होता है, पैसा शेयर मार्केट जैसे रिस्की एसेट्स में चला जाता है। इस बार की गिरावट प्रॉफिट बुकिंग, डॉलर इंडेक्स की मजबूती, और ट्रंप के चाइना ट्रेड टॉक्स (China trade talks) में सुधार की वजह से आई। अगर व्यापारिक माहौल सुधरता है, तो सोना-चांदी दोनों की चमक थोड़ी और कम हो सकती है। लेकिन अगर US debt बढ़ा, dollar कमजोर हुआ, या सेंट्रल बैंक्स ने सोना खरीदना जारी रखा, तो सोने को फिर से सपोर्ट मिल सकता है।
मार्केट में करेक्शन जरूरी है
किस वजह से सोना-चांदी ऊपर या नीचे जाएंगे, यह कोई पक्का नहीं बता सकता। दोनों मेटल्स ने बहुत तेज़ी दिखाई है और अब हर इन्वेस्टर की वॉचलिस्ट में हैं। लेकिन जितनी तेज़ी से दाम बढ़ते हैं, उतनी ही जल्दी करेक्शन भी आता है। आने वाले महीनों में उतार-चढ़ाव और स्थिरता का दौर देखने को मिल सकता है।
निवेशकों के लिए सलाह
कीमतें थोड़ी गिरने पर बहुत से लोग बाय द डिप सोचकर एंट्री लेना चाहते हैं। लेकिन हर किसी के लिए यह सही रणनीति नहीं है। संभावना है कि दाम कुछ और नीचे जाएं और फिर कुछ महीनों तक रेंज-बाउंड रहें। ऐसे समय में कई शॉर्ट-टर्म इन्वेस्टर्स निकल जाते हैं और बाद में आने वाली अगली रैली मिस कर देते हैं। आज भारत में सोना ₹1,22,200 प्रति 10 ग्राम और चांदी ₹1,48,730 प्रति किलो है। कल क्या रेट होगा, कोई नहीं जानता। फाइनेंशियल प्लैनर्स की मानें तो पोर्टफोलियो का 5-10% हिस्सा ही सोना-चांदी जैसे मेटल्स में लगाना चाहिए और वह भी लॉन्ग-टर्म व्यू से।
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