भारत अब भी अंतरिक्ष से 'सारे जहाँ से अच्छा' दिखाई देता है.
रविवार को यह बात एस्ट्रोनॉट शुभांशु शुक्ला ने अपने आदर्श राकेश शर्मा के शब्दों को दोहराते हुए कही. राकेश शर्मा 1984 में अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले पहले भारतीय थे.
शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष में मौजूद इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) में 18 दिन बिताने के बाद पृथ्वी पर लौटने की तैयारी कर रहे हैं.
उन्होंने यह भी कहा कि आज का भारत अंतरिक्ष से देखने पर महत्वाकांक्षा से भरा, निडर और आत्मविश्वासी दिखता है. साथ ही उन्होंने अंतरिक्ष से भारत का दृश्य अपने अंदाज़ में बताया.
रविवार को आईएसएस में हुई फ़ेयरवेल सेरेमनी में शुभांशु शुक्ला ने कहा, "आज का भारत महत्वाकांक्षी दिखता है. आज का भारत निडर दिखता है, आज के भारत में आत्मविश्वास दिखता है. आज का भारत गर्व से पूर्ण है. इन्हीं सब कारणों की वजह से, मैं एक बार फिर से कह सकता हूँ कि आज का भारत अभी भी 'सारे जहाँ से अच्छा' दिखता है. जल्द ही धरती पर मुलाक़ात करते हैं."
एक्सियम-4 मिशन के कमांडर पेगी व्हिट्सन, पायलट शुभांशु शुक्ला और मिशन स्पेशलिस्ट स्लावोस्ज़ अज़नान्स्की विज़नियेवस्की और टीबोर कापू ने 25 जून को फ्लोरिडा से अंतरिक्ष यात्रा शुरू की और 26 जून को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पहुंचे थे.
एक्सियम-4 मिशन की टीम ने अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर अपने 18 दिन के प्रवास के आख़िरी दिनों में वहाँ मौजूद सात अन्य साथियों के साथ मिलकर विदाई और खाने-पीने का आनंद लिया.
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विदाई समारोह में भावुक हुए अंतरिक्ष यात्री
रविवार को आईएसएस पर हुए एक अनौपचारिक विदाई समारोह के दौरान कुछ सदस्य भावुक हो गए थे. चारों अंतरिक्ष यात्रियों ने वहाँ मौजूद सदस्यों को गले लगाया जिनसे उनकी दोस्ती वहाँ रहने के दौरान हुई.
शुभांशु शुक्ला ने कहा, "मैं इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता था जब 25 जून को मिशन की शुरुआत हुई थी. मैं सोचता हूं कि यहाँ मौजूद लोगों की वजह से सब कुछ शानदार रहा. मेरे पीछे खड़े लोग (एक्सपेडिशन 73 की टीम) ने इसे हमारे लिए वाकई ख़ास बना दिया है. यहाँ होना और आप जैसे पेशेवर लोगों के साथ काम करना वाकई ख़ुशी की बात है."
केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि एक्सियम-4 मिशन सोमवार को शाम 4:35 बजे आईएसएस से पृथ्वी की ओर लौटेगा और मंगलवार को दोपहर तीन बजे अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया तट के पास पहुंचेगा.
इन चारों अंतरिक्ष यात्रियों के पृथ्वी पर लौटने के बाद उन्हें गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में जीवन के साथ फिर से सामंजस्य बैठाने के लिए सात दिन के रिहैबिलिटेशन (पुनर्वास) में रहने की उम्मीद है.
शुभांशु शुक्ला के लिए यह यात्रा ऐतिहासिक रही है. वह आईएसएस पहुंचने वाले पहले भारतीय बने और अंतरिक्ष में यात्रा करने वाले राकेश शर्मा के बाद दूसरे भारतीय हैं. राकेश शर्मा 1984 में उस समय के सोवियत संघ के सल्युत-7 अंतरिक्ष स्टेशन मिशन के तहत गए थे.
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अब तक, शुक्ला अंतरिक्ष में 18 दिन बिता चुके हैं, जहाँ उन्होंने हर दिन 16 सूर्योदय और सूर्यास्त देखे, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पृथ्वी से करीब 400 किलोमीटर ऊपर की कक्षा में 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से घूमता है.
पीटीआई के मुताबिक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने शुक्ला की आईएसएस यात्रा के लिए लगभग 550 करोड़ रुपए ख़र्च किए. यह अनुभव इसरो को 2027 में शुरू होने वाले अपने मानव अंतरिक्ष मिशन 'गगनयान' की योजना में मदद करेगा.
शुक्ला और अन्य तीन अंतरिक्ष यात्री भारतीय समयानुसार दोपहर 2:25 बजे अंतरिक्ष यान में सवार होंगे, स्पेस सूट पहनेंगे और ज़रूरी जांच के बाद पृथ्वी की ओर वापसी की यात्रा शुरू करेंगे.
ड्रैगन अंतरिक्ष यान धीरे-धीरे रफ़्तार कम कर पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करने के लिए ऑटोमेटिक अनडॉकिंग की प्रक्रिया शुरू करेगा. इसके बाद वह अमेरिका के कैलिफ़ोर्निया तट के पास समुद्र में लैंड करेगा.
नासा ने कहा कि, "ड्रैगन अंतरिक्ष यान 580 पाउंड से अधिक सामान के साथ लौटेगा, जिसमें नासा का हार्डवेयर और इस मिशन के दौरान किए गए 60 से अधिक वैज्ञानिक प्रयोगों का डेटा शामिल है."
अंतरिक्ष यात्रियों ने क्या-क्या प्रयोग किए?आईएसएस पर अपने प्रवास के दौरान शुभांशु शुक्ला ने माइक्रोएल्गी प्रयोग पर काम किया. उन्होंने ऐसे सैंपल लिए जो भविष्य में बड़े अंतरिक्ष अभियानों के लिए भोजन, ऑक्सीजन और बायोफ़्यूल का स्रोत बन सकते हैं.
एक्सियम स्पेस ने बताया कि माइक्रोएल्गी की सहनशीलता उन्हें पृथ्वी से बाहर जीवित रहने के लिए एक संभावित संसाधन उपलब्ध कराती है. नासा के बयान में कहा गया कि गुरुवार को एक्सपेडिशन 73 और एक्सियम मिशन 4 की टीमों की दिनचर्या में सबसे ऊपर एक्सरसाइज और स्पेससूट की मरम्मत रही.
इसके अलावा, क्रू ने 'वॉयेजर डिस्प्ले' की स्टडी को भी जारी रखा, जो अंतरिक्ष उड़ान के दौरान आँखों की गति और समन्वय पर असर को समझने के लिए किया जा रहा है.
टीम ने एक अन्य स्टडी के लिए डेटा इकट्ठा किया जिसमें यह समझने की कोशिश की गई कि अंतरिक्ष यात्री कक्षा में अपने वातावरण को कैसे अनुभव करते हैं और उसके साथ कैसे तालमेल बनाते हैं.
यह जानकारी लंबी अवधि के अभियानों के लिए मानसिक रूप से मदद करने वाली रहने योग्य जगहों के डिज़ाइन में मदद करेगी.
एक अन्य अध्ययन में दिमाग़ में रक्त प्रवाह (सेरेब्रल ब्लड फ़्लो) पर फ़ोकस किया गया, जिससे यह समझा जा सके कि माइक्रोग्रैविटी और उच्च स्तर की कार्बन डाइऑक्साइड हार्ट को कैसे प्रभावित करती है. इससे भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों और पृथ्वी पर मरीज़ों, दोनों को लाभ मिल सकता है.
क्रू ने अंतरिक्ष में रेडिएशन के असर की निगरानी के लिए रैड नैनो डोज़ीमीटर नामक कॉम्पैक्ट उपकरण का इस्तेमाल किया, जो अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा का मूल्यांकन करता है.
इसके अलावा, टीम ने 'अक्वायर्ड इक्विवेलेंस टेस्ट' नामक एक मानसिक प्रयोग में भाग लिया जो सीखने और अंतरिक्ष में रहने की क्षमता को मापता है.
साथ ही, उन्होंने फोटॉनग्रैव स्टडी के लिए दिमाग़ की गतिविधियों से जुड़ा डेटा इकट्ठा किया, ताकि अंतरिक्ष और मेडिकल में काम आने वाली न्यूरोएडैप्टिव तकनीकों को समझा जा सके.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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