भारत-पाकिस्तान संघर्ष के संदर्भ में टिप्पणी और कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह से प्रेस ब्रीफ़िंग कराने को लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाले प्रोफ़ेसर अली ख़ान महमूदाबाद को सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम ज़मानत दे दी है.
प्रोफ़ेसर अली ख़ान को 18 मई को हरियाणा पुलिस ने गिरफ़्तार किया गया था.
ये गिरफ़्तारी हरियाणा की सोनीपत पुलिस ने स्थानीय निवासी योगेश की शिकायत के आधार पर की थी.
हरियाणा पुलिस ने प्रोफ़ेसर अली ख़ान के ख़िलाफ़ दो समुदायों में नफ़रत भड़काने की धारा के तहत मामला दर्ज किया था.
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सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर फैसला देते हुए कहा,'' हमने दो कथित आपत्तिजनक ऑनलाइन पोस्ट की विषयवस्तु पर विचार किया. इन याचिकाओं की वजह से याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध दो प्राथमिकी दर्ज हुई हैं. हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि जांच पर रोक लगाने का कोई मामला नहीं बनता. हालांकि, संलिप्तता को समझने और ऑनलाइन पोस्ट में प्रयुक्त कुछ शब्दों की उचित व्याख्या के लिए हम हरियाणा के पुलिस महानिदेशक को निर्देश देते हैं कि वे एक विशेष जांच दल यानी एसआईटी का गठन करें.''
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, '' एसआईटी में तीन आईपीएस अधिकारी (सीधे नियुक्त) हों जो हरियाणा या दिल्ली राज्य से संबंध नहीं रखते हों. यह एसआईटी एक (पुलिस महानिरीक्षक) आईजी या उससे ऊपर के पद के अधिकारी की अध्यक्षता में कार्य करेगी और अन्य दोनों सदस्य एसपी या उससे ऊपर के रैंक के होंगे. इन तीन सदस्यों में से एक सदस्य महिला आईपीएस अधिकारी होनी चाहिए. एसआईटी का गठन 24 घंटे के भीतर किया जाना चाहिए."
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, " ज़मानत के लिए की गई याचिका पर भी विचार किया है. बताई गई जांच को सुविधाजनक बनाने के मद्देनज़र, हम निर्देश देते हैं कि याचिकाकर्ता को अंतरिम ज़मानत पर रिहा किया जाए, बशर्ते कि वह मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सोनीपत के समक्ष जमानत बॉन्ड्स प्रस्तुत करे."
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट की कुछ शर्तों के अलावा, याचिकाकर्ता को निम्नलिखित निर्देश दिए जाते हैं-
- याचिकाकर्ता कोई भी ऑनलाइन पोस्ट या लेख नहीं लिखेगा और उन दोनों ऑनलाइन पोस्टों से संबंधित कोई मौखिक भाषण नहीं देगा, जो जांच के अधीन हैं.
- उसे भारतीय भूमि पर हुए आतंकवादी हमले या हमारे देश द्वारा दिए गए जवाब संबंधी किसी भी मुद्दे पर राय व्यक्त करने से भी रोका जाता है.
- याचिकाकर्ता को अपना पासपोर्ट मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, सोनीपत के समक्ष जमा करना होगा."
- याचिकाकर्ता को जांच में शामिल होना होगा और पूरी तरह सहयोग करना होगा. अंतरिम ज़मानत देने का एक उद्देश्य जांच को सुविधाजनक बनाना भी है.
प्रोफ़ेसर अली ख़ान हरियाणा की अशोका यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं. यह एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी है.
अली ख़ान महमूदाबाद राजनीति विज्ञान और इतिहास के प्रोफ़ेसर हैं. वो राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष भी हैं.
अली ख़ान महमूदाबाद की फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल के मुताबिक़, वो उत्तर प्रदेश के महमूदाबाद के रहने वाले हैं.
अशोका यूनिवर्सिटी के आधिकारिक वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार उन्होंने अमेरिका के एमहर्स्ट कॉलेज से इतिहास और राजनीति विज्ञान में ग्रेजुएशन किया.
इसके बाद उन्होंने सीरिया की दमिश्क यूनिवर्सिटी से एमफिल किया. उन्होंने इस दौरान न केवल सीरिया बल्कि लेबनान, मिस्र और यमन की यात्रा की, साथ ही ईरान और इराक़ में भी कुछ वक्त गुज़ारा.
उन्होंने अपनी पीएचडी इंग्लैंड की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से पूरी की.
अपने इंस्टाग्राम और एक्स प्रोफ़ाइल में अली ख़ान महमूदाबाद ने खुद को समाजवादी पार्टी का नेता बताया है. उनके इंस्टाग्राम और फ़ेसबुक टाइमलाइन पर पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के साथ उनकी कुछ तस्वीर भी हैं.
हालांकि न तो समाजवादी पार्टी और न ही अखिलेश यादव ने इस मामले पर किसी तरह की कोई प्रतिक्रिया दी है.
क्या था पूरा मामला?इस मामले में बीबीसी संवाददाता चंदन कुमार जजवाड़े ने शिकायतकर्ता योगेश से बात की थी.
योगेश के मुताबिक़ कि वो जठेड़ी गांव के सरपंच भी हैं और उन्होंने इस मामले में एफ़आईआर दर्ज कराई है. वो बीजेपी के सदस्य भी है, हालांकि उनका कहना है कि इस मामले का पार्टी से कोई संबंध नहीं है.
छह और सात मई की दरमियानी रात को पाकिस्तान के ख़िलाफ़ भारतीय सेना की कार्रवाई के बाद कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने प्रेस ब्रीफ़िंग में इसके बारे में जानकारी दी थी.
इसके बाद बीते आठ मई को प्रोफ़ेसर अली ख़ान महमूदाबाद ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया था.
इस पोस्ट में उन्होंने कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह को प्रेस ब्रीफ़िंग में भेजे जाने को लेकर लिखा था.
इसके अलावा प्रोफ़ेसर अली ख़ान ने अपनी पोस्ट में भारत-पाकिस्तान संघर्ष और 'युद्ध की मांग' करने वालों की भावनाओं को लेकर भी लिखा और युद्ध के नुक़सान बताए थे
हरियाणा राज्य महिला आयोग ने उनके इस पोस्ट का स्वतः संज्ञान लेते हुए उन्हें 12 मई को समन जारी किया था.
इस समन में उनके इस बयान से 'सशस्त्र बलों में महिलाओं के कथित अपमान और सांप्रदायिक द्वेष को बढ़ावा देने' की बात कही गई थी.
हरियाणा महिला आयोग ने अपने नोटिस में छह बिंदुओं का ज़िक्र किया था और इसमें 'कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह समेत वर्दीधारी महिलाओं का अपमान और भारतीय सशस्त्र बलों में पेशेवर अधिकारियों के रूप में उनकी भूमिका को कमतर आंकने' की बात भी कही थी.
साथ ही हरियाणा महिला आयोग ने प्रोफ़ेसर अली ख़ान को 48 घंटे का समय देते हुए आयोग के सामने पेश होने को कहा और उनसे लिखित जवाब मांगा था.
इसके बाद प्रोफ़ेसर अली ख़ान की तरफ़ से उनके वकीलों ने महिला आयोग को लिखित जवाब दिया था. इस जवाब में उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 19 (1) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात कही थी.
प्रोफ़ेसर अली ख़ान के वकीलों ने कहा था कि वो इतिहास और राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर हैं. उन्होंने अपनी 'शैक्षणिक और पेशेवर विशेषज्ञता का इस्तेमाल' करते हुए ये बयान दिए हैं और इन्हें 'ग़लत समझा' गया है.
प्रोफ़ेसर अली ख़ान के इन्हीं बयानों को लेकर शनिवार, 17 मई को हरियाणा के सोनीपत के स्थानीय निवासी योगेश ने एक एफ़आईआर दर्ज कराई था
इसी शिकायत के आधार पर रविवार को हरियाणा पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार किया था.
हरियाणा पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता की धारा 196 (1)बी, 197 (1)सी, 152 और 299 के तहत प्रोफ़ेसर अली ख़ान के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया था.
आठ मई को की गई पोस्ट में प्रोफ़ेसर अली ख़ान ने लिखा था, "इतने सारे दक्षिणपंथी टिप्पणीकार कर्नल सोफ़िया क़ुरैशी की तारीफ़ कर रहे हैं, ये देखकर मैं खुश हूं. लेकिन ये लोग शायद इसी तरह से मॉब लिंचिंग के पीड़ितों, मनमाने ढंग से बुलडोज़र चलाने और बीजेपी के नफ़रत फैलाने के शिकार लोगों को लेकर भी आवाज़ उठा सकते हैं कि इन लोगों को भारतीय नागरिक के तौर पर सुरक्षा दी जाए."
प्रोफ़ेसर अली ख़ान ने कहा था, "दो महिला सैनिकों के ज़रिए जानकारी देने का नज़रिया महत्वपूर्ण है. लेकिन इस नज़रिए को हक़ीक़त में बदलना चाहिए, नहीं तो यह केवल पाखंड है."
हालांकि, प्रोफ़ेसर अली ख़ान ने अपने इसी पोस्ट में भारत की विविधता की भी तारीफ़ की थी.
उन्होंने लिखा था, "सरकार जो दिखाने की कोशिश कर रही है उसकी तुलना में आम मुसलमानों के सामने जमीनी हक़ीक़त अलग है. लेकिन साथ ही इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस (कर्नल सोफ़िया और विंग कमांडर व्योमिका सिंह की प्रेस ब्रीफ़िंग) से पता चलता है कि भारत अपनी विविधता में एकजुट है और एक विचार के रूप में पूरी तरह से मरा नहीं है."
प्रोफ़ेसर अली ख़ान ने अपनी पोस्ट के आख़िर में तिरंगे के साथ 'जय हिंद' लिखा था.
प्रोफ़ेसर अली ख़ान की पत्नी और वकील का क्या कहना था?
प्रोफ़ेसर अली ख़ान महमूदाबाद की गिरफ़्तारी के बारे में जानने के लिए बीबीसी ने उनकी पत्नी से बात की थी.
प्रोफ़ेसर अली ख़ान की पत्नी ओनाइज़ा ने बीबीसी को बताया था, "सुबह क़रीब साढ़े छह बजे पुलिस की टीम अचानक हमारे घर पहुंची और बिना कोई जानकारी दिए प्रोफ़ेसर अली ख़ान को अपने साथ ले गई."
ओनाइज़ा ने बताया था, "मैं नौ महीने की गर्भवती हूं. जल्द ही मेरी डिलीवरी होने जा रही है, मेरे पति को बिना कोई ठोस कारण या वजह बताए ज़बरदस्ती घर से उठा लिया गया ."
वहीं प्रोफ़ेसर अली ख़ान महमूदाबाद के वकीलों की टीम से जुड़े एक वकील ने बीबीसी को बताया था, "हम ये मान रहे हैं कि उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया है और उन्हें ट्रांज़िट रिमांड पर लेकर सोनीपत ले जाया जा रहा है. उन्हें वहां स्थानीय अदालत में पेश किया जा सकता है. अभी हम भी और जानकारी जुटाने की कोशिश कर रहे हैं."
हरियाणा पुलिस ने प्रोफ़ेसर अली ख़ान महमूदाबाद की गिरफ़्तारी की पुष्टि कर दी थी.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार सेना के 'ऑपरेशन सिंदूर' पर टिप्पणी के लिए पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया था.
अली ख़ान की गिरफ़्तारी पर किसने क्या कहा था?प्रोफ़ेसर अली ख़ान महमूदाबाद की गिरफ़्तारी के बाद सोशल मीडिया पर कई जाने-माने लोगों ने प्रतिक्रिया दी थी.
स्वराज अभियान सह-संस्थापक योगेंद्र यादव ने कहा था कि प्रोफ़ेसर अली ख़ान की गिरफ़्तारी चौंकाने वाली है.
उन्होंने अली ख़ान महमूदाबाद की पोस्ट को शेयर करते हुए एक्स पर लिखा था, "इस पोस्ट को पढ़िए और ख़ुद से पूछिए, इसमें महिला विरोधी क्या है? यह पोस्ट धार्मिक द्वेष कैसे फैला रही है? और यह भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को कैसे ख़तरे में डाल रही है? (एफ़आईआर में भारतीय न्याय संहिता की धारा 152). पुलिस ऐसी शिकायत के आधार पर कार्रवाई कैसे कर सकती है?"
योगेंद्र यादव ने ये भी लिखा था, "ये भी पूछिए कि क्या मध्य प्रदेश के उस मंत्री का कुछ हुआ है, जिसने वास्तव में कर्नल सोफ़िया का अपमान किया था?"
इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर प्रोफ़ेसर अली ख़ान की गिरफ़्तारी की ख़बर पोस्ट करते हुए लिखा, "लोकतंत्र की जननी."
लेखक और दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद का कहना था "हरियाणा पुलिस ने अवैध तरीक़े से अली ख़ान महमूदाबाद को गिरफ़्तार किया है."
प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद ने एक्स पर लिखा, "हरियाणा पुलिस ने डॉ. अली ख़ान को अवैध रूप से गिरफ़्तार किया है. बिना ट्रांज़िट रिमांड के उन्हें दिल्ली से हरियाणा ले जाया गया. रात 8 बजे एफ़आईआर दर्ज की गई और अगली सुबह 7 बजे पुलिस उनके घर पहुँच गई!"
उन्होंने इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से दख़ल देने की मांग करते हुए और प्रबीर पुरकायस्थ मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का ज़िक्र किया था.
राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के सांसद मनोज कुमार झा ने भी अली ख़ान महमूदाबाद की गिरफ़्तारी को लेकर पोस्ट किया था.
उन्होंने लिखा था, "सच्चा लोकतंत्र वह है जहां आप खुले होने के लिए 'बंद' नहीं हैं."
तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने प्रोफ़ेसर अली ख़ान की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ कोर्ट जाने की बात की थी.
वहीं 'द हिन्दू' अख़बार की पत्रकार सुहासिनी हैदर ने कहा था कि प्रोफ़ेसर अली ख़ान की पोस्ट भेदभाव को लेकर थी.
उन्होंने कहा था, "उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया है, जबकि इस मुद्दे पर एक मंत्री ने सांप्रदायिक टिप्पणी की और वो खुलेआम घूम रहे हैं."
इससे पहले हरियाणा राज्य महिला आयोग के समन के ख़िलाफ़ 1203 लोगों ने एक पत्र जारी कर प्रोफ़ेसर अली ख़ान का समर्थन किया था.
इस पत्र के ज़रिए इन लोगों ने हरियाणा राज्य महिला आयोग से "समन वापस लेने और प्रोफ़ेसर अली खान महमूदाबाद से सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगने" की मांग की थी.
इसके साथ ही इन लोगों ने अशोका यूनिवर्सिटी से अपील की थी कि वो अपने प्रोफ़ेसर के साथ खड़े रहें.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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