अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एशिया के दौरे पर जा रहे हैं, जहां वह एक हफ़्ते तक लगातार अलग-अलग बैठकों में शामिल रहेंगे.
इस दौरान उनकी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से होने वाली मुलाक़ात पर सबकी नज़रें टिकी हैं.
दोनों नेताओं के बीच सबसे अहम मुद्दा व्यापार रहेगा- एक ऐसा क्षेत्र जहां दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच तनाव एक बार फिर बढ़ गया है.
ट्रंप रविवार को मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर पहुंचे, जहां दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान का शिखर सम्मेलन शुरू होगा. इसके बाद वह जापान और फिर दक्षिण कोरिया जाएंगे, जहां व्हाइट हाउस के अनुसार उनकी मुलाक़ात शी जिनपिंग से होगी.
तो ट्रंप और दूसरे नेता इस दौरे से क्या हासिल करना चाहते हैं और जोख़िम क्या हैं?
बीबीसी संवाददाता बता रहे हैं कि आने वाले हफ़्ते में क्या अहम रहेगा.
ट्रंप के लिए, चीन ही सबसे अहमट्रंप के एशिया दौरे का मुख्य लक्ष्य नए व्यापार समझौते करना होगा, ताकि अमेरिकी कंपनियों को नए मौक़े मिलें और साथ ही टैरिफ़ से होने वाली आमदनी अमेरिकी ख़ज़ाने में बनी रहे.
वैश्विक व्यापार की इस दौड़ में कई खिलाड़ी हैं, लेकिन ट्रंप की सफलता या असफलता की चाबी चीन के हाथ में है. शी जिनपिंग के साथ ट्रंप की यह मुलाक़ात एपेक सम्मेलन के दौरान होनी है. 2019 के बाद दोनों नेताओं की यह पहली बैठक होगी. यह बातचीत ट्रंप के दूसरे कार्यकाल के बचे समय के लिए अमेरिका-चीन रिश्तों की दिशा तय कर सकती है.
ट्रंप ख़ुद मान चुके हैं कि चीनी सामान पर लगाए गए कठोर टैरिफ़ लंबे समय तक टिक नहीं सकते. भले ही उन्होंने यह साफ़ तौर पर नहीं कहा हो, लेकिन अमेरिका के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार के साथ बढ़ता आर्थिक टकराव न केवल दोनों देशों बल्कि पूरी दुनिया के लिए भारी असर डाल सकता है.
जब भी चीन और अमेरिका के बीच बातचीत रुकती दिखती है, अमेरिकी शेयर बाज़ारों में भारी गिरावट इस हक़ीक़त की याद दिलाती है.
अगर ट्रंप अगले हफ़्ते अमेरिका लौटते समय दक्षिण कोरिया के साथ कोई समझौता पक्का कर लें और जापान से अमेरिकी इंडस्ट्री में नए निवेश की प्रतिबद्धता हासिल कर लें, तो इसे उनके लिए बड़ी सफलता माना जाएगा.
लेकिन उनका सबसे बड़ा लक्ष्य यही रहेगा कि शी जिनपिंग को मनाया जाए ताकि चीन अमेरिकी कृषि उत्पादों की ख़रीद फिर शुरू करे, विदेशी कंपनियों पर लगाए गए नए प्रतिबंधों में ढील दे, अमेरिकी कंपनियों को चीन के बाज़ार में ज़्यादा पहुंच दे और ट्रेड वॉर से बचा जाए.
ट्रंप के लिए, जैसा कहा जाता है - यही पूरा खेल है.
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Getty Images ट्रंप के एशिया दौरे के दौरान होने वाली बैठकों में टैरिफ़ एक बड़ा मुद्दा रहेगा लॉरा बिकर, चीन संवाददाता जब चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग 30 अक्तूबर को दक्षिण कोरिया में ट्रंप से मिलेंगे, तो वह अपने आपको ज़्यादा मज़बूत वार्ताकार के रूप में पेश करना चाहेंगे.
इसीलिए वह चीन के उस दबदबे का इस्तेमाल कर रहे हैं जो रेयर अर्थ यानी दुर्लभ खनिजों पर है. ऐसे खनिज जिनके बिना सेमीकंडक्टर, वेपन (हथियार) सिस्टम, गाड़ियां या स्मार्टफ़ोन तक नहीं बनाए जा सकते. यह अमेरिका की एक बड़ी कमज़ोरी है और चीन इसका फ़ायदा उठा रहा है- जैसे चीन अमेरिकी किसानों के सोयाबीन न ख़रीदकर ट्रंप के ग्रामीण वोट बैंक को चोट पहुंचा रहा है.
शी जिनपिंग ने ट्रंप के पहले कार्यकाल से सबक सीखा है और इस बार लगता है कि चीन टैरिफ़ से होने वाले नुक़सान को झेलने को तैयार है. एक वजह यह भी है कि अब अमेरिका, जो कभी चीन के निर्यात का पांचवां हिस्सा ख़रीदता था, चीन के लिए पहले जितना अहम बाज़ार नहीं रह गया है.
फिर भी शी जिनपिंग को एक ओर अमेरिका के साथ आर्थिक टकराव तो दूसरी ओर घरेलू मुश्किलों के बीच संतुलन साधना होगा. अमेरिका शी की चीन में चुनौतियों से वाकिफ़ है: युवाओं में बेरोज़गारी, रियल एस्टेट संकट, स्थानीय सरकार पर बढ़ता कर्ज और ऐसी आबादी जो ख़र्च करने को तैयार नहीं है.
विश्लेषकों का मानना है कि चीन कोई समझौता तभी पेश करेगा जब ट्रंप एडवांस एआई चिप्स के निर्यात को दोबारा शुरू करने या ताइवान को मिल रही सैन्य मदद में कटौती करने पर सहमत हों.
लेकिन वहां तक पहुंचना आसान नहीं होगा. एक बड़ा फ़र्क यह है कि ट्रंप अक्सर दांव खेलने और जोख़िम उठाने को तैयार दिखते हैं जबकि शी बहुत लंबी रणनीति खेल रहे हैं.
तो सवाल यह है कि क्या ट्रंप उतना इंतज़ार कर सकते हैं?
जोनाथन हेड, दक्षिण-पूर्व एशिया संवाददातामलेशिया की अपनी यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप एक ही चीज़ में दिलचस्पी लेते दिख रहे हैं. उस समारोह में मुख्य भूमिका निभाने में, जो ख़ास तौर पर उनके लिए आयोजित किया गया है, जिसमें थाईलैंड और कम्बोडिया किसी तरह का शांति समझौता करने जा रहे हैं.
दोनों देशों के बीच सीमा विवाद अब भी पूरी तरह सुलझा नहीं है, लेकिन किसी नतीजे पर पहुंचने के दबाव में उन्होंने सीमा क्षेत्र से सैनिकों को हटाने पर सहमति बना ली है.
कोई भी राष्ट्रपति ट्रंप को नाराज़ नहीं करना चाहता. जुलाई में जब वे एक-दूसरे पर बमबारी कर रहे थे, तब ट्रंप ने टैरिफ़ बातचीत ख़त्म करने की धमकी दी थी, जिसके बाद दोनों ने तुरंत संघर्षविराम की घोषणा कर दी थी.
आसियान के बाकी सदस्य देश उम्मीद कर रहे हैं कि ट्रंप की मौजूदगी, भले ही थोड़ी देर के लिए हो, अमेरिका के साथ उनके रिश्तों को सामान्य बनाने में मदद करेगी.
उनके लिए यह साल मुश्किल भरा रहा है. ट्रंप की टैरिफ़ नीति से इन देशों की निर्यात-आधारित अर्थव्यवस्थाएं बुरी तरह हिल गईं. 2017 में ट्रंप की पिछली आसियान यात्रा के बाद से अमेरिकी बाज़ार को क्षेत्रीय निर्यात दोगुना हो चुका है.
जब ट्रंप चले जाएंगे, तो बाकी नेता अपने सामान्य काम में लग सकेंगे – यानी शांति से और धीरे-धीरे बातचीत करके आपसी रिश्तों को थोड़ा-थोड़ा बेहतर बना सकेंगे.
लिस्ट में एक और मुद्दा भी है, जिस पर ट्रंप का ध्यान नहीं है- म्यांमार का गृहयुद्ध, जो 2021 में हुए सैन्य तख़्तापलट के बाद से हर आसियान बैठक पर छाया रहा है.
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एशिया के औद्योगिक केंद्र, जो दुनिया के बड़े हिस्से का उत्पादन करते हैं, ट्रंप के टैरिफ़ से राहत पाने की उम्मीद कर रहे हैं.
कुछ देशों ने समझौते तय कर लिए हैं, जबकि कुछ अब भी बातचीत में फंसे हैं लेकिन किसी ने औपचारिक रूप से कोई करार नहीं किया है.
इसलिए अगर कोई समझौता काग़ज़ पर उतर जाए, या कम से कम बातचीत में ठोस प्रगति हो, तो इसे स्वागत योग्य माना जाएगा.
चीन का ही उदाहरण लें तो ट्रंप और शी की मुलाक़ात प्रगति का संकेत देती है, लेकिन दोनों नेताओं के बीच टैरिफ़ से लेकर निर्यात तक हल करने को कई मसले हैं. साथ ही दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और एडवांस टेक्नोलॉजी में बढ़त हासिल करने की होड़ है.
अगर दोनों देशों के बीच तनाव में थोड़ी भी कमी आती है, तो इसका फायदा उन देशों को होगा जो इस खींचतान के बीच फंसे हुए हैं. दक्षिण-पूर्व एशिया शायद सबसे ज़्यादा प्रभावित है. वह इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में अमेरिकी सप्लाई चेन का अहम हिस्सा है, लेकिन साथ ही चीनी मांग पर भी निर्भर है.
पिछले दस सालों में अमेरिका को इस क्षेत्र से होने वाला निर्यात दोगुना हुआ है, लेकिन 10 से 40 प्रतिशत तक के टैरिफ़ वियतनाम, इंडोनेशिया, सिंगापुर और थाईलैंड जैसे देशों के निर्माताओं पर भारी असर डाल सकते हैं.
इससे अमेरिकी चिप बनाने वाली कंपनियां भी प्रभावित होंगी, जैसे माइक्रोन टेक्नोलॉजी, जो मलेशिया में अपने प्लांट चलाती है. मलेशिया ने पिछले साल अमेरिका को क़रीब 10 अरब डॉलर के सेमीकंडक्टर निर्यात किए - जो कुल अमेरिकी चिप आयात का लगभग पांचवां हिस्सा है.
जापान और दक्षिण कोरिया जैसी समृद्ध अर्थव्यवस्थाओं के सामने अलग चुनौती है.
हालांकि वे अमेरिका के क़रीबी सहयोगी हैं, लेकिन उनके लिए समय अनिश्चित है. वे टैरिफ़ और निवेश के स्थायी समझौते करना चाहेंगे. दोनों देशों की ऑटोमोबाइल कंपनियां, जिनके लिए अमेरिका एक बड़ा बाज़ार है, पहले से ही इस अस्थिर माहौल से जूझ रही हैं.
शाइमा ख़लील, जापान संवाददाताअमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने जापान की नई प्रधानमंत्री सनेई तकाइची को 'मज़बूत और समझदार महिला' बताया है.
इस हफ़्ते, ट्रंप के साथ स्थिर और प्रभावी रिश्ता बनाने की उनकी क्षमता उनके नेतृत्व की शुरुआती परीक्षा होगी और यह भी तय करेगी कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में जापान की भूमिका क्या होगी.
संसद में अपने पहले भाषण में तकाइची ने जापान का रक्षा बजट बढ़ाने का वादा किया, यह दिखाने के लिए कि जापान अब अमेरिका के साथ सुरक्षा की ज़िम्मेदारी ज़्यादा उठाने को तैयार है.
ट्रंप पहले भी इस मुद्दे पर बोल चुके हैं और उम्मीद की जा रही है कि वह जापान पर अमेरिकी सैनिकों की तैनाती में ज़्यादा योगदान देने का दबाव डालेंगे. जापान में इस समय विदेश में तैनात सबसे ज़्यादा अमेरिकी सैनिक हैं, लगभग 53,000.
दोनों देश अपने पुराने समझौते पर भी काम कर रहे हैं. यह समझौता जापान की ऑटो कंपनियों टोयोटा, होंडा और निसान के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है. इससे अमेरिकी बाज़ार में जापानी कारों पर लगने वाला आयात शुल्क (टैरिफ़) 27.5 प्रतिशत से घटकर 15 प्रतिशत हो जाएगा, जिससे उन्हें चीनी कंपनियों के मुक़ाबले ज़्यादा प्रतिस्पर्धी बनाया जा सकेगा.
तकाइची ने रयोसेई अकाज़ावा को मुख्य टैरिफ़ वार्ताकार बनाए रखकर नीतिगत निरंतरता पर भरोसा जताया है.
बदले में जापान ने अमेरिका में 550 अरब डॉलर का निवेश करने का वादा किया है, ताकि दवाइयों और सेमीकंडक्टर के क्षेत्र में सप्लाई चेन को मज़बूत किया जा सके.
ट्रंप ने यह भी कहा है कि जापान अमेरिकी कृषि उत्पादों, जिनमें चावल भी शामिल है, की ख़रीद बढ़ाएगा. यह कदम अमेरिका में स्वागत योग्य माना गया है, हालांकि जापानी किसानों में इसे लेकर चिंता है.
तकाइची के दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे से घनिष्ठ संबंध भी उनके लिए मददगार साबित हो सकते हैं.
आबे ने ट्रंप का भरोसा जीतने के लिए मार-ए-लागो में गोल्फ़ खेलते हुए संबंध बनाए थे. तकाइची भी शायद उसी तरह की व्यक्तिगत कूटनीति अपनाने की कोशिश करें.
जेक क्वॉन, सोल संवाददातादक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ली जे-म्यांग के लिए इस समय सबसे अहम मुद्दा ट्रंप के टैरिफ़ हैं.
लेकिन इस पर ध्यान जाने से पहले ही अचानक अटकलें तेज़ हो गईं कि ट्रंप सीमा पर जाकर उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन से मिल सकते हैं.
अगस्त में ली ने व्हाइट हाउस के ओवल ऑफ़िस में ज़्यादातर समय ट्रंप की तारीफ़ करने में बिताया और उन्हें 'शांति स्थापित करने वाला नेता' कहा. ट्रंप ने भी 2019 के बाद पहली बार किम से मिलने की संभावना पर उत्साह जताया था. किम ने पिछले महीने कहा था कि वह ट्रंप को 'प्यार से याद करते हैं.'
विश्लेषकों का मानना है कि किम एक बार फिर अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ शिखर बैठक कर अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम को वैध ठहराना चाहते हैं. हालांकि, अभी तक ऐसी किसी मुलाक़ात के तय होने के संकेत नहीं हैं.
उधर, ली के सामने व्यापार समझौते पर बातचीत की चुनौती है. दक्षिण कोरियाई निर्यात पर अमेरिकी टैरिफ़ 25 प्रतिशत है. दक्षिण कोरिया चाहता है कि उसे घटाकर 15 प्रतिशत किया जाए लेकिन इस सिलसिले में प्रस्तावित वार्ता ठप पड़ी है, जबकि दक्षिण कोरिया के अधिकारी कई बार अमेरिका की यात्रा कर चुके हैं.
अड़चन की वजह ट्रंप की यह मांग है कि दक्षिण कोरिया अमेरिका में पहले 350 अरब डॉलर का निवेश करे- जो देश की कुल अर्थव्यवस्था का लगभग पांचवां हिस्सा है. दक्षिण कोरिया को डर है कि इतना बड़ा निवेश आर्थिक संकट पैदा कर सकता है.
हालांकि हाल के दिनों में कोरियाई अधिकारियों ने उम्मीद जताई है कि बातचीत में ठोस प्रगति हुई है. वे चाहेंगे कि बुधवार को ट्रंप और ली के बीच होने वाले शिखर सम्मेलन के अंत तक कोई औपचारिक समझौता साइन हो जाए.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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