2023 में मॉनसून के दौरान हुई भारी बारिश और तबाही से हिमाचल प्रदेश अभी तक उबर भी नहीं पाया था कि इस साल मॉनसून ने लोगों को फिर से डराना शुरू कर दिया है.
30 जून और एक जुलाई की दरमियानी रात को मंडी ज़िले की सुदूर सराज घाटी में बादल फटने की 14 घटनाएं हुईं.
इनमें 14 लोगों की मौत हो गई और 31 लोग अब भी लापता बताए जा रहे हैं. सड़कें, पेड़ और दूसरे कई ढांचे भी पानी के तेज़ बहाव में बह गए हैं.
इस इलाके़ के लोगों के लिए खेती और सेब के बग़ान उनकी आय का अहम ज़रिया है, लेकिन इस साल की मॉनसून की बारिश में उनके खेत और बाग़ान बुरी तरह तबाह हो गए हैं.
मंडी ज़िले से मिल रही रिपोर्ट के मुताबिक़, अधिकारियों का कहना है कि लापता और मृतकों की संख्या बढ़ने की आशंका है.
जो लोग बच गए हैं, वो धीरे-धीरे इस त्रासदी से उबरने की कोशिश कर रहे हैं. वो अब अपने परिजनों की गुमशुदगी की शिकायत लेकर ज़िला प्रशासन से संपर्क कर रहे हैं.
लोगों को बचाने के लिए चलाए जाने वाले बचाव ऑपरेशन के तहत अब तक 402 लोगों को बचाया गया है. इनमें 92 स्टूडेंट और टीचर शामिल हैं. ये लोग सराज विधानसभा क्षेत्र में जंजैहली के नज़दीक बाग़ों में फंसे हुए थे.
जिला प्रशासन के अनुसार, थुनाग सबसे अधिक प्रभावित सब-डिवीज़न है. यहां लगभग 250 कर्मी बचाव, राहत और पुनर्वास कार्यों में जुटे हुए हैं.
सराज में तैनात एक डॉक्टर ने नाम न बताने की शर्त पर फ़ोन पर हमें बताया, ''वहां भयावह दृश्य था. कई नाले जो वर्षों से सूखे पड़े थे, बादल फटने के चलते एक ही रात में उफ़ान पर आ गए और देखते ही देखते मकान और सड़कों को बहा ले गए.''
प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा है कि सराज विधानसभा क्षेत्र के जंजैहली के लिए राहत सामग्री भेजी गई है.
साथ ही करसोग-जंजैहली सड़क मार्ग के ज़रिए संपर्क बहाल करने की पूरी कोशिश की जा रही है. बारिश, पत्थर खिसकने और मलबे के कारण यहां सड़क संपर्क टूट गया है.
साथ ही उन्होंने प्रदेश के लोगों से अपील की है कि "प्रदेश में बारिश के रेड अलर्ट को देखते हुए लोग अधिक सतर्क और सजग रहें."
इस बीच हिमाचल प्रदेश आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने कहा है कि छह और सात जुलाई को कांगड़ा, सिरमौर और मंडी ज़िले में कुछ जगहों पर भारी से बेहद भारी बारिश हो सकती है. इसके अलावा उना, बिलासपुर, हमीरपुर, चंबा, सोलन, शिमला और कुल्लू में भी भारी बारिश हो सकती है.
जानें गईं, घर टूटे और जमा-पूंजी बह गईमंडी में रहने वालों का कहना है कि घाटी का दृश्य बेहद भयावह नज़र आ रहा है. अंदरूनी इलाक़ों को जोड़ने वाली मुख्य सड़क कई जगहों पर टूट चुकी है.
स्टेट डिज़ास्टर रेस्पॉन्स फोर्स, नेशनल डिज़ास्टर रेस्पॉन्स फोर्स और स्थानीय पुलिस के बाद अब सेना भी इस दुर्गम और बारिश से प्रभावित इलाके़ में राहत कार्य में जुटी हुई है.
प्रभावित लोगों का कहना है कि बादल फटने की इस घटना में उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों, घर और अपनी जमा-पूंजी खो दी है.
उनका कहना है कि वो न्यूनतम ज़रूरतें पूरी करने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं. इस समय उनका एक ही सहारा है, और वो है राशन किट. इनमें से कुछ को ये किट पाने के लिए दरक चुकी पहाड़ियों की वजह से लंबी दूरी तक पैदल चलना पड़ रहा है.
सड़क संपर्क से पूरी तरह कट चुके कुछ दुर्गम इलाक़ों में राशन पहुंचाने के लिए खच्चरों की मदद ली जा रही है.
मंडी का एक और इलाक़ा है, धर्मपुर, जहां इस बार भारी बारिश ने जान-माल का बहुत नुक़सान किया है.
मंडी के डिप्टी कमिश्नर अपूर्व देवगन के मुताबिक़, "बादल फटने के कारण आई बाढ़ और भूस्खलन से बुरी तरह प्रभावित सराज क्षेत्र के दूरदराज के गांवों रुकचुई, भराड़ और प्याला डेज़ी तक राहत दल पहुंचने में सफल रहे हैं."
उन्होंने बताया कि नेशनल डिज़ास्टर रेस्पॉन्स फोर्स (एनडीआरएफ़) ने डेज़ी और अन्य गांवों से 65 लोगों को सुरक्षित निकाल लिया है.
उन्होंने कहा, "भारी बारिश और भूस्खलन के कारण थुनाग और दूसरे ग्रामीण इलाक़ों की संपर्क सड़कें टूट गई थीं, जिसके चलते स्थानीय प्रशासन ने एनडीआरएफ़ के सहयोग से यहां फंसे लोगों तक पहुंचने के लिए एक विशेष अभियान चलाया था."
मंडी में रहने वाले एक फ़ोटो जर्नलिस्ट बीरबल शर्मा का कहना है कि इस बार बारिश के कारण जो नुक़सान हुआ है वो अभूतपूर्व है.
उन्होंने कहा, "पिछले साल भी यहां भारी बारिश हुई थी. लेकिन हमने कभी नहीं देखा कि एक ही दिन में एक ही इलाके़ में बादल फटने की 14 घटनाएं हुई हों. पहले यह एक दुर्लभ घटना होती थी. अब यह अक्सर और बड़े पैमाने पर हो रही है."
बीरबल सवाल करते हैं, "ऐसा क्यों हो रहा है? हर बरसात में नुक़सान होता है, लेकिन अब ज़्यादा नुक़सान क्यों हो रहा है? हमें इस पर गहराई से सोचने की ज़रूरत है."
उन्होंने कहा, "हिमाचल की पारिस्थितिकी नाज़ुक है, लेकिन हमारा विकास मॉडल पर्यावरण के बिल्कुल उलट है. यहां तक कि कभी एकांत, हरे-भरे और सुंदर इलाक़ा रहे सराज में अब मानव गतिविधियां हद से ज्यादा बढ़ गई हैं. बीते कुछ वर्षों में यहां बहुत तेज़ी से निर्माण कार्य हुआ है."
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2023 के मॉनसून में हिमाचल प्रदेश में अभूतपूर्व बारिश हुई थी. इस दौरान मुख्य रूप से कुल्लू, मंडी और शिमला जिले प्रभावित हुए थे. राज्य सरकार के अनुमान के अनुसार, इसमें 10 हज़ार करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ था और 500 से अधिक लोगों की जान गई थी.
राज्य सरकार ने इस आपदा को 'राष्ट्रीय आपदा' घोषित करने की मांग की थी. सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने आरोप लगाया था कि उन्हें केंद्र सरकार से इसके लिए पर्याप्त सहायता नहीं मिली. हालांकि, बीजेपी नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष जयराम ठाकुर का कहना था कि केंद्र सरकार हर तरह से राज्य की सहायता कर रही है.
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने बताया कि इस बार भी राज्य में मूसलधार बारिश से हुई तबाही में अब तक 69 लोगों की जान जा चुकी है, जबकि 110 लोग घायल हुए हैं. 37 लोग अब भी लापता हैं.
उन्होंने कहा, "बारिश से जुड़ी आपदा के कारण हिमाचल प्रदेश को अब तक क़रीब 700 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ है."
विशेष रूप से मंडी जिले के सराज और धर्मपुर क्षेत्रों में भारी बारिश ने घरों और ज़मीनों को व्यापक रूप से नुक़सान पहुंचाया है.
राज्य सरकार ने प्रभावित परिवारों को हर महीने 5000 रुपये किराये के तौर पर देने का फ़ैसला किया है. ये वो लोग हैं जिनके घर क्षतिग्रस्त हुए हैं और जो इस समय किराये के मकान में रह रहे हैं.
मुख्यमंत्री ने कहा कि संबंधित एसडीएम को निर्देश दिया गया है कि वो प्रभावित लोगों को जल्द से जल्द खाद्य सामग्री मुहैया कराएं.
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हिमाचल प्रदेश में कुछ पर्यावरण विशेषज्ञ यहां हुई व्यापक क्षति के लिए राज्य में बेतरतीब निर्माण गतिविधियों के ज़िम्मेदार ठहराते हैं.
हिमालय नीति अभियान से जुड़े पर्यावरण कार्यकर्ता कुलभूषण उपमन्यु कहते हैं, ''हमें बदलते हालात में अपने विकास मॉडल को दोबारा समझने और उसकी दिशा बदलने की ज़रूरत है.''
वो कहते हैं, "इस स्थिति के लिए ग्लोबल वॉर्मिंग के व्यापक असर के अलावा कई स्थानीय कारण भी ज़िम्मेदार हैं. जैसे यहां बड़े प्रोजेक्टों का अवैज्ञानिक ढंग से क्रियान्वयन हो रहा है. बहुत ज़्यादा इमारतें बनाना हो, चार लेन की सड़कें हों या पनबिजली परियोजनाएं, इन सबने मिलकर पहाड़ों को असुरक्षित बना दिया है. पेड़ों की अंधाधुंध कटाई हो रही है और अब तो हल्की बारिश में भी यहां भारी तबाही हो जाती है. हमें इस सवाल का जवाब ढूंढना होगा.''
पर्यावरण विज्ञान, टेक्नोलॉजी और जलवायु परिवर्तन विभाग के ज्वाइंट मेम्बर सेक्रेटरी और प्रमुख वैज्ञानिक अधिकारी डॉ. सुरेश सी अत्री कहते हैं, "हिमाचल प्रदेश में बादल फटने की घटनाओं के सामान्य होते जाने का प्रमुख कारण ग्लोबल वार्मिंग है. इस पहाड़ी राज्य की संकरी घाटियां कई कारणों से अधिक संवेदनशील हैं."
उन्होंने बताया, "देश के प्रतिष्ठित राष्ट्रीय संस्थानों द्वारा किए गए वैज्ञानिक अध्ययनों में ये बात सामने आई है कि हिमाचल प्रदेश में औसत तापमान में बीते सौ वर्षों में 0.9 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है, जो हिमालयी राज्यों में सबसे अधिक है."
"लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण यह है कि हम ज़मीनी स्तर पर विकास कार्यों को किस तरह अंजाम देते हैं. हमें इसकी समीक्षा करनी चाहिए."
उन्होंने यह भी कहा कि सराज क्षेत्र में बहुत अधिक निर्माण नहीं हुए हैं, लेकिन यह संकरी घाटी पारिस्थितिकी की नज़र से पहले से ही संवेदनशील रही है, इसलिए वहां नुक़सान अधिक हुआ है.

हाल ही में भारी बारिश के दौरान शिमला के बाहरी इलाके़ भट्टाकुफर में एक पांच मंज़िला इमारत गिर गई थी. इसे लेकर बीजेपी और कांग्रेस के बीच भी विवाद हुआ.
दरअसल इस इमारत को एसडीएम ने समय रहते इमारत खाली करवा दिया था लेकिन इस घटना से राज्य में कथित अवैज्ञानिक तरीके़ से हो रही खुदाई के मुद्दा भी उठा.
ये विवाद तब और बढ़ गया जब राज्य के ग्रामीण विकास मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) के एक मैनेजर पर ग़लत तरीके़ से खुदाई करने का आरोप लगाया.
मंत्री और उनके साथियों पर मैनेजर को थप्पड़ मारने का आरोप भी लगा. एनएचएआई के मैनेजर की शिकायत पर मंत्री के ख़िलाफ़ एफ़आईआर भी दर्ज की गई.
इसके बाद केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने ट्वीट कर इस घटना की निंदा की. उन्होंने कहा कि उन्होंने इस घटना के बारे में राज्य के सीएम से भी बात की है.
मंत्री अनिरुद्ध सिंह खुद पर लगे आरोपों को ख़ारिज करते हैं. उनका कहना है कि चार लेन की सड़क निर्माण के लिए लापरवाही से की गई खुदाई की वजह से आसपास के घर असुरक्षित हो गए हैं.
बाद में सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा था कि इस मुद्दे पर उनके पास केंद्रीय मंत्री का कॉल आया था.
उन्होंने कहा, "बड़ी कंपनियों को ठेके सिर्फ उनकी मशीनरी के आधार पर दे दिए जाते हैं, लेकिन उन्हें राज्य के नाज़ुक पहाड़ी भूभाग की समझ नहीं होती. नतीजतन, वे अपने हिसाब से पहाड़ों की कटाई करते हैं, जिससे नुक़सान होता है."
मुख्यमंत्री ने सुझाव दिया कि एनएचएआई को ऐसे ठेके स्थानीय ठेकेदारों को देने चाहिए, जो इलाके़ की भौगोलिक संवेदनशीलता से परिचित हों और यहां की विशेष स्थिति को समझते हों.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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