"मेरा फिल्म इंडस्ट्री में गाने का ख़्वाब ही नहीं था. आज भी मेरा ये ख़्वाब नहीं है."
ये शब्द हैं बॉलीवुड फ़िल्मों की जानी मानी गायिका अनुराधा पौडवाल के.
अनुराधा पौडवाल ने बॉलीवुड फ़िल्मों में 'नज़र के सामने', 'दिल है कि मानता नहीं', 'कह दो कि तुम' और 'बहुत प्यार करते हैं' जैसे मशहूर गाने गाए.
तीन दशक से ज़्यादा गुजर जाने के बाद आज भी ये गाने लोगों की ज़ुबां पर हैं.
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अनुराधा पौडवाल का जन्म 1954 में मुंबई में हुआ. अनुराधा पौडवाल ने गायिकी की दुनिया में बड़ा नाम बनने का कभी ख़्वाब नहीं देखा, लेकिन एक से बढ़कर एक गानों के जरिए उनकी आवाज़ भारत के घर-घर तक पहुंच गई.
अनुराधा पौडवाल के परिवार में माता-पिता के अलावा तीन बहनें थीं. अनुराधा के पिता आरे मिल्क में डायरेक्टर थे.
उन्होंने सेंट जेवियर्स मुंबई से इंटरमीडिएट की पढ़ाई की. हालांकि जल्दी शादी होने की वजह से वो अपनी पढ़ाई को आगे जारी नहीं रख पाईं.
बीबीसी हिंदी की ख़ास पेशकश 'कहानी ज़िंदगी की' में गायिका अनुराधा पौडवाल ने अपनी ज़िंदगी के कई अहम पलों को इरफ़ान के साथ साझा किया.
आसान नहीं रहा सफ़रअनुराधा पौडवाल के लिए गायिकी की दुनिया में पहुंचने का सफ़र आसान नहीं रहा. अनुराधा पौडवाल के पिता नहीं चाहते थे कि वो गायिकी की दुनिया में क़दम रखें.
जिस दौर में अनुराधा गायिकी सीख रही थीं उस दौरान ज़्यादातर लोगों की प्राथमिकता पढ़ाई की दुनिया में ही अच्छा करियर बनाने की रहती थी.
एक वक्त निमोनिया से जूझने की वजह से अनुराधा पौडवाल की आवाज़ लगभग बंद हो गई थी. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और ट्रेनिंग की और गायिकी को ही अपनी दुनिया बना लिया.
अनुराधा पौडवाल ने कहा, "ये फ़ैक्ट है. उसके बाद मेरी आवाज़ भी बदल गई. म्यूजिक के लिए मेरा प्यार बहुत ज़्यादा था. ये फ़िल्म इंडस्ट्री के बारे में नहीं था. मेरा इरादा फ़िल्म इंडस्ट्री में आने का नहीं था. मेरी मां को गायिकी का बहुत शौक था, लेकिन मेरे पिता को ये बिल्कुल पसंद नहीं था."
"आजकल तो हर इंसान हर एक चीज करना चाहता है. लेकिन हमारे दौर में ऐसा नहीं था. चीजें सिंपल थीं."
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अनुराधा पौडवाल के पति बॉलीवुड के जाने माने संगीतकार एसडी बर्मन के साथ जुड़े हुए थे.
साल 1973 में आई 'अभिमान' फिल्म के जरिए अनुराधा पौडवाल को गायिकी की दुनिया में पहला ब्रेक मिला.
अनुराधा पौडवाल ने बताया, "अभिमान के लिए जो गाने की बात हुई वो इसलिए हुई क्योंकि मेरे पति अरुण एसडी बर्मन के लिए अरेंजर थे. बर्मन दा ने कहा एक स्थिति है जिसमें जया शिव मंदिर से बाहर निकल रही हैं और वो गायिका का किरदार निभा रही हैं. बर्मन दा ने अरुण को बोला कि ऐसे कोई श्लोक लेकर आओ उनके लिए."
"उन्होंने (अरुण) उसे कंपोज किया और मुझे कहा कि रिकॉर्ड कर दो और गा दो. जैसे ही उन्होंने सुना और पूछा कि ये किसने गाया है. अरुण ने कहा ये अनुराधा ने गाया है. ये लता जी को गाना था. फिर उन्होंने कहा कि इतने छोटे से श्लोक के लिए अनुराधा को ही बुला लेते हैं."
इस तरह अनुराधा पौडवाल की स्टूडियो में एंट्री हुई और उनकी गायिकी का सफ़र शुरू हुआ. इसके बाद जाने माने संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और बप्पी लहिरी ने अनुराधा पौडवाल से संपर्क किया.
अनुराधा पौडवाल को एसडी बर्मन के साथ ज़्यादा काम करने का मौका तो नहीं मिला. हालांकि इरफ़ान के साथ बातचीत करते हुए उन्होंने उस दौरान के अपने अनुभव को साझा किया.
उन्होंने कहा, "एसडी बर्मन बेहद विनम्र और डाउन टू अर्थ इंसान थे. उनका मन एक बच्चे के जैसा था. मुझे उनके साथ काम करके बहुत अच्छा लगा था."
अनुराधा पौडवाल के पास स्टूडियो में पहली बार जाने से पहले माइक पर गाने का कोई अनुभव नहीं था. लेकिन एसडी बर्मन ने उनकी काफ़ी मदद की.
19 साल की उम्र में मिला ब्रेक19 साल की उम्र में ही अनुराधा पौडवाल की गायिकी का सफ़र शुरू हुआ.
अपने करियर की शुरुआत के बारे में अनुराधा पौडवाल ने कहा, "वो वीडियो का दौर नहीं था. लोग गाने सुनते थे. कोई भी महिला की आवाज़ होती थी तो लोग कहते थे कि ये तो लता मंगेशकर हैं. उस दौरान मैंने काफ़ी गाने गाए."
"टी सिरीज़ जॉइन करने के बाद मुझे असली पहचान मिली. आशिकी, लाल दुपट्टा मल मल का के बाद एक पहचान मिली."
अनुराधा पौडवाल ने कहा, "फ़िल्म इंडस्ट्री के लिए गाने गाना मेरा ख़्वाब नहीं था. लेकिन जब अच्छे गाने मिले तो खुशी हुई. माधुरी जी पर गाए गए गाने धक-धक करने लगा, कह दो कि तुम जैसे गानों की इतने सालों बाद भी चर्चा होती है."
अनुराधा पौडवाल ने उस दौर में गायिकी की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई जब लता मंगेशकर और आशा भोसले का बॉलीवुड में दबदबा हुआ करता था.
हालांकि अनुराधा पौडवाल लता मंगेशकर को ही अपना गुरु मानती हैं.
उन्होंने कहा, "लता मंगेशकर को मैं संगीत के लिए अपना गुरु मानती हूं. वो मेरी गुरु थीं और वो हमेशा मेरी गुरु रहेंगी. मेरा मानना है कि गुरु से कभी भी बराबरी नहीं होती है. वो जैसे सुर लगाती थीं वैसा सुर कोई लगाकर तो दिखाए. आशा जी का रियाज आज भी जारी है."
टी सिरीज के साथ रहा लंबा साथ
अनुराधा पौडवाल ने काफ़ी लंबे वक्त तक टी सिरीज के साथ काम किया. उन्होंने इरफ़ान के साथ बातचीत में गुलशन कुमार के साथ काम करने के अनुभवों को भी साझा किया.
अनुराधा पौडवाल ने कहा, "गुलशन जी विजनरी थे. जो उन्होंने किया वो आज तक किसी ने नहीं किया. वो अपने आर्टिस्ट में 100 फीसदी विश्वास रखते थे. उनको पूरी आजादी देते थे. एक बार कोई अच्छा गाना बन जाता था तो उसे दुनिया के सामने लाने के लिए वो अपना पूरा जोर लगा देते थे."
"आज के समय में किसी भी अच्छे आर्टिस्ट को श्रेय कम मिलता है. गुलशन जी ऐसे नहीं थे. वो जिनका श्रेय होता था उन्हें देते थे. उनका देखने का तरीका अलग था."
अनुराधा पौडवाल को 2017 में भारत सरकार की ओर से पद्म श्री से नवाज़ा गया.
उन्हें महाराष्ट्र सरकार ने 2013 में मोहम्मद रफी अवॉर्ड दिया और 2013 में उन्हें मध्य प्रदेश सरकार से लता मंगेशकर अवॉर्ड मिला.
अनुराधा पौडवाल कहती हैं, "मेरी ज़िंदगी हमेशा एक खुली किताब रही है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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