
रूस और भारत के संबंधों की जब भी बात होती है तो सोवियत संघ वाली गर्मजोशी लोग याद करते हैं.
1955 में सोवियत संघ के नेता निकिता ख्रुश्चेव भारत के दौरे पर आए थे. उन्होंने इस दौरे में कहा था, ''हम आपके बहुत क़रीब हैं. अगर आप हमें पर्वत के शिखर से भी बुलाएंगे तो हम आपकी तरफ़ होंगे.''
1991 में जब सोवियत संघ बिखर गया और रूस बचा तब भी भारत के साथ संबंधों में भरोसा बना रहा. जब पश्चिम के देश कश्मीर को लेकर दुविधा में रहते थे, उस वक़्त सोवियत यूनियन ने कहा था कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है.
शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कश्मीर के मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने के प्रस्ताव को कई बार वीटो कर रोका है. भारत हमेशा से कहता रहा है कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय मुद्दा है और रूस इसका शुरू से समर्थन करता रहा है.
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों में सोवियत संघ एकमात्र देश था, जिसने 1957, 1962 और 1971 में कश्मीर में यूएन के हस्तक्षेप वाले प्रस्ताव को रोका था. रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के ख़िलाफ़ आए प्रस्तावों को अब तक छह बार वीटो किए हैं. इनमें ज़्यादातर वीटो कश्मीर के लिए थे. गोवा में पुर्तगाल का शासन ख़त्म करने के लिए भारत के सैन्य हस्तक्षेप को लेकर भी सोवियत संघ ने यूएनएससी में वीटो किया था.

जब भारत ने अगस्त 2019 में कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किया, तब भी रूस ने भारत का समर्थन किया था. लेकिन पहलगाम हमले के बाद भारत की पाकिस्तान में सैन्य कार्रवाई को लेकर रूस की प्रतिक्रिया को भारत के प्रति बहुत उत्साहजनक नहीं देखा जा रहा है. रूस की प्रतिक्रिया बहुत ही संतुलित और तटस्थ थी.
रूस ने भारत और पाकिस्तान से तनाव कम करने की अपील की थी और यहां तक कि मध्यस्थता की भी पेशकश की थी. रूसी राष्ट्रपति के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने कहा था, ''भारत हमारा रणनीतिक पार्टनर है. पाकिस्तान भी हमारा पार्टनर है. हम दिल्ली और इस्लामाबाद दोनों से संबंधों को तवज्जो देते हैं.''
रूस की संतुलित प्रतिक्रियातीन मई को भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और रूस के विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोफ़ के बीच बातचीत हुई थी. इस बातचीत की जानकारी देते हुए रूसी विदेश मंत्रालय ने कहा था, ''रूसी विदेश मंत्री ने दिल्ली और इस्लामाबाद से द्विपक्षीय वार्ता के ज़रिए विवाद ख़त्म करने की अपील की है.''
रूसी विदेश मंत्रालय की इस टिप्पणी को रीपोस्ट करते हुए थिंक टैंक ब्रुक्रिंग्स इंस्टिट्यूशन की सीनियर फेलो ने लिखा, ''12 सालों से भी कम समय में रूस ने यूक्रेन पर दो बार हमला किया, वो भारत से कह रहा है कि पाकिस्तान से विवाद बातचीत के ज़रिए ख़त्म करो.''
तन्वी मदान की इस पोस्ट पर एक ने लिखा, ''रूस को क्या हो गया है? हमारे प्रधानमंत्री ने यूक्रेन में जाकर कहा था कि रूस और यूक्रेन को बातचीत के ज़रिए विवाद सुलझाना चाहिए जबकि भारत को रूस जैसे परखे हुए दोस्त के साथ खड़ा रहना चाहिए था. इसे ही न्यूटन का तीसरा नियम कहते हैं. यानी हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है.''
इसके जवाब में तन्वी मदान ने लिखा, ''2022 में भारत ने यूक्रेन के साथ जंग में रूस का साथ नहीं दिया, इसलिए रूस ने भी नहीं दिया,यह पूरी तरह से सही नहीं है. यहाँ तक कि 2019 में भी पुलवामा के बाद रूस ने भारत से शांति की अपील और मध्यस्थता की पेशकश की थी.''
तन्वी मदान की इस टिप्पणी का जवाब देते हुए थिंक टैंक ओआरएफ़ में भारत-रूस संबंधों के विशेषज्ञ ने लिखा, ''90 के दशक से भारत को लेकर रूस का रुख़ मिला-जुला रहा है. यहाँ तक कि 2002 में पुतिन ने भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की कोशिश की थी लेकिन भारत ने इसे नकार दिया था. बदलती जियोपॉलिटिक्स से अलग संयुक्त राष्ट्र संघ में सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्य देशों के बीच आम सहमति है कि तनाव कम करने में उन्हें अपनी भूमिका निभानी चाहिए.''
एलेक्सई से सहमति जताते हुए मॉस्को स्थित एचएसई यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफ़ेसर ने लिखा, ''न्यूक्लियर वाले पॉइंट पर मैं भी एलेक्सई से सहमत हूँ. एक परमाणु शक्ति संपन्न देश के तौर पर रूस की यह ज़िम्मेदारी है कि अन्य शक्तिशाली देशों के साथ मिलकर तनाव कम करे. दो परमाणु शक्ति संपन्न देश जब युद्ध की ओर बढ़ रहे हों तो शांति की अपील स्वाभाविक है.''
रूस से उम्मीदें
निवेदिता कपूर ने लिखा है, ''लेकिन चीन जब टकराव की घड़ी में पाकिस्तान का खुलकर समर्थन कर रहा है तो भारत की तरफ से उम्मीद बढ़ जाती है कि रूस भी खुलकर भारत का समर्थन करे. रूस वास्तव में वह सिरदर्द नहीं चाहता है, जिसमें उसे फिर से भारत और चीन के बीच संतुलन बनाए रखने की चिंता करनी पड़े और दोनों पक्षों को अपनी साझेदारी के बारे में आश्वस्त करना पड़े. साथ ही जब उसके दो प्रमुख साझेदार विपरीत पक्षों में हों तो सक्रिय रूप से पक्ष लेने से भी बचने की कोशिश करता है.''
नई दिल्ली स्थिति जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में रूसी और मध्य एशिया अध्ययन केंद्र में असोसिट प्रोफ़ेसर डॉ राजन कुमार से पूछा कि वह पाकिस्तान के साथ भारत के संघर्ष में रूस के रुख़ को कैसे देखते हैं?
डॉ राजन कुमार कहते हैं, ''अभी तक रूस पाकिस्तान और कश्मीर मामले में भारत को एकतरफ़ा समर्थन देने की बात करता था. लेकिन इस बार रूस ने पूरे मामले में द्विपक्षीय वार्ता की बात की, उसने मध्यस्थता की बात लेकिन जो भारत के पक्ष में एकतरफ़ा रुख़ होता था वो नहीं दिखा.''
डॉ राजन कुमार कहते हैं, ''यह ज़रूर है कि इस बार भी रूस भारत की तरफ़ झुका दिखा लेकिन उसका बयान बहुत ही संतुलित था. भारत के पक्ष में पूरी तरह से नहीं था. लावरोफ़ का बयान बहुत ही संतुलित था. इस बार रूस कहीं न कहीं पूरे मामले में ख़ुद को सीमित करता दिखा.''
डॉ राजन कुमार इसके तीन कारण मानते हैं. वह कहते हैं, ''रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत रूस की तरफ़ झुका था लेकिन भारत ने पूरी तरह से रूस का समर्थन नहीं किया, जैसा कि वह चाहता था. प्रधानमंत्री की यूक्रेन यात्रा हुई थी और उन्होंने डिप्लोमैसी के ज़रिए यूक्रेन वॉर सुलझाने के लिए कहा था. प्रधानमंत्री ने यह भी कहा था कि किसी भी देश की संप्रभुता का उल्लंघन नहीं होना चाहिए.''
''दूसरा कारण यह है कि भारत अमेरिका के बहुत क़रीब जा चुका है और रक्षा सहयोग काफी बढ़ा है. रूस से भारत की रक्षा साझेदारी कम हुई है और पश्चिम से बढ़ी है. तीसरा कारण रूस की अपनी मजबूरी भी है. रूस ने तालिबान से प्रतिबंध हटा दिया है. रूस अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान के ज़रिए पाँव जमाना चाहता है. ऐसे में पुतिन पाकिस्तान को पूरी तरह से किनारे नहीं करना चाहते हैं.''
राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का आख़िरी भारत दौरा दिसंबर 2021 में हुआ था यानी फ़रवरी 2022 में यूक्रेन के साथ युद्ध शुरू होने के बाद पुतिन भारत नहीं आए हैं. दूसरी तरफ़ वो चीन दो बार जा चुके हैं. इस दौरान अन्य देशों का भी दौरा करते रहे हैं. यहाँ तक कि सितंबर 2023 में नई दिल्ली में आयोजित जी-20 समिट में भी पुतिन नहीं आए थे.भारत के साथ रूस का एनुअल समिट होता है, वो भी अनियमित हुआ है.
हाल के वर्षों में उन संगठनों में भारत का विलगाव बढ़ा है, जहाँ रूस अहम भूमिका निभाता है. जैसे शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन (एससीओ).
नरेंद्र मोदी जुलाई 2024 में एससीओ समिट में शामिल नहीं हुए थे. भारत के पास 2023 में एससीओ की अध्यक्षता थी और इसे लो प्रोफाइल अध्यक्षता के रूप में देखा जाता है.
इस समिट का आयोजन भारत ने वर्चुअल कराया था. दूसरी तरफ़ इसी साल भारत ने जी-20 समिट का अपनी अध्यक्षता में हाई प्रोफाइल आयोजन कराया था. दोनों देशों के बीच पिछले साल 68 अरब डॉलर का व्यापार था लेकिन भारत ने इनमें से 60 अरब डॉलर का रूस से तेल ख़रीदा था.
2009 से 2013 के बीच भारत का 76 प्रतिशत हथियार आयात रूस से था लेकिन 2019 से 2013 के बीच इसमें 36 प्रतिशत की आई है.
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में ही रूसी और मध्य एशिया अध्ययन केंद्र के प्रोफ़ेसर संजय कुमार पांडे कहते हैं कि यूक्रेन और रूस की जंग में भी भारत रूस के ख़िलाफ़ नहीं था लेकिन समर्थन एकतरफ़ा नहीं था.
प्रोफ़ेसर पांडे कहते हैं, ''हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान रूस के लिए कोई अछूत नहीं रहा है. 1965 में पाकिस्तान और भारत की जंग में रूस तटस्थ था और मध्यस्थता कर रहा था. सोवियत संघ की मध्यस्थता में ही ताशकंद समझौता हुआ था और यह भारत के पक्ष में नहीं था. इसी समझौते के बाद भारतीय सेना को पीछे हटना पड़ा था. 1971 की जंग मे ज़रूर रूस भारत के साथ था लेकिन अब दुनिया बहुत बदल चुकी है. इसके बावजूद मैं मानता हूँ कि रूस अब भी हमारे साथ है. रूस से भारत ने अमेरिका के विरोध के बावजूद एस-400 ख़रीदा था और इस बार पाकिस्तानी हमले को रोकने में इसकी अहम भूमिका रही है.''
पश्चिम से पाकिस्तान के संबंध कमज़ोर पड़ने के कारण रूस से नज़दीकी बढ़ने की बात की जा रही है. 2023 में रूस और पाकिस्तान का द्विपक्षीय व्यापार एक अरब डॉलर का था जो कि अब तक सबसे ज़्यादा था. रूस के उपप्रधानमंत्री एलेक्सेई ओवरचुक ने पिछले साल पाकिस्तान को ब्रिक्स में शामिल करने का समर्थन किया था.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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