राजस्थान में पंचायती राज और स्थानीय निकाय चुनावों को लेकर लंबे समय से अनिश्चितता बनी हुई है। राज्य की जनता इन चुनावों का बेसब्री से इंतज़ार कर रही है। बताया जा रहा है कि परिसीमन और पुनर्गठन की प्रक्रिया के कारण चुनाव स्थगित हो रहे हैं। चर्चा है कि भजनलाल सरकार 'एक राज्य-एक चुनाव' की तर्ज पर दिसंबर 2025 तक पंचायती राज संस्थाओं और नगरीय निकायों के एक साथ चुनाव कराने की दिशा में काम कर रही है।
इस बीच, हाईकोर्ट ने भी सरकार और राज्य चुनाव आयोग से सवाल किया था कि 6,500 से ज़्यादा ग्राम पंचायतों और 50 से ज़्यादा नगर निकायों के चुनाव कब होंगे। अप्रैल में दायर हलफनामे में सरकार ने कहा था कि पुनर्गठन और परिसीमन की प्रक्रिया मई-जून तक पूरी हो जाएगी, जिसके बाद चुनावों की तारीखें तय की जाएँगी। हालाँकि, यह प्रक्रिया अभी भी पूरी नहीं हुई है।
बता दें, राज्य की 6,500 से ज़्यादा पंचायती राज संस्थाओं और 50 से ज़्यादा नगरीय निकायों का कार्यकाल पहले ही समाप्त हो चुका है। जनवरी 2025 में पंचायतों का कार्यकाल समाप्त होने के बाद, सरकार ने सरपंचों को प्रशासक नियुक्त किया, जिसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई।
सरकार 'एक राज्य-एक चुनाव' के पक्ष में
बता दें कि भजनलाल सरकार 'एक राज्य-एक चुनाव' की अवधारणा को लागू करने की दिशा में तेज़ी से काम कर रही है। सरकार का मानना है कि एक साथ चुनाव कराने से समय और संसाधनों की बचत होगी, प्रशासनिक समन्वय बेहतर होगा और बार-बार आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य बाधित नहीं होंगे। स्वायत्त शासन एवं शहरी विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने एक बयान में कहा है कि पंचायतों और निकायों के चुनाव एक साथ कराने से प्रक्रिया सरल होगी और संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा।
कैबिनेट उप-समिति की क्या भूमिका है?
सूत्रों के अनुसार, पंचायती राज संस्थाओं के पुनर्गठन के लिए गठित कैबिनेट उप-समिति जल्द ही अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी। समिति के सदस्य और सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री अविनाश गहलोत ने बताया कि अगले 15 से 20 दिनों में लगातार बैठकों के बाद रिपोर्ट तैयार की जाएगी। यह रिपोर्ट मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा को सौंपी जाएगी, जिनके स्तर पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा। मंत्री गहलोत ने संकेत दिया कि यदि सब कुछ योजना के अनुसार रहा, तो दिसंबर 2025 तक पंचायतों और नगरीय निकायों के चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं।
चुनावों में देरी का कारण क्या है?
परिसीमन एवं पुनर्गठन: राज्य निर्वाचन आयोग ने एक आरटीआई के जवाब में स्पष्ट किया है कि वर्तमान में उनके पास पंचायती राज एवं नगरीय निकाय चुनावों का कोई प्रस्ताव नहीं है। आरटीआई के माध्यम से राज्य निर्वाचन आयोग से पूछा गया था कि 30 मई 2025 तक कार्यकाल समाप्त हो चुके पंचायती राज संस्थाओं एवं नगरीय निकायों के चुनाव कब तक कराए जाने प्रस्तावित हैं, साथ ही प्रस्तावित चुनाव कार्यक्रम की जानकारी भी मांगी गई थी।
आयोग ने अपने उत्तर में स्पष्ट किया कि पंचायती राज संस्थाओं एवं नगरीय निकायों के आगामी आम चुनावों के लिए परिसीमन एवं पुनर्गठन का कार्य राज्य सरकार के स्तर पर प्रक्रियाधीन है। इस कारण, चुनावों की आधिकारिक घोषणा से पहले आम चुनावों की तिथियों एवं कार्यक्रम की जानकारी देना संभव नहीं है।
हार के डर से चुनाव टाल रही है सरकार
आरटीआई कार्यकर्ता और कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता संदीप कलवानिया ने कहा कि नगरीय निकायों और पंचायती राज संस्थाओं का पाँच साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है, लेकिन सरकार परिसीमन और पुनर्गठन के नाम पर चुनाव टाल रही है। जबकि संविधान के अनुच्छेद 243 (ई) (यू) के अनुसार पाँच साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद चुनाव कराना अनिवार्य है। भाजपा सत्ता में आने के बाद जनता से किए गए वादों को पूरा करने में विफल रही है, इसलिए हार के डर से चुनाव से डर रही है।
पुनर्गठन और परिसीमन की प्रक्रिया
बता दें, पुनर्गठन रिपोर्ट में नए परिसीमन, वार्ड निर्धारण और जिला परिषदों के ढांचे पर सुझाव शामिल किए जा रहे हैं। जानकारी के अनुसार, ग्राम पंचायतों की सीमाएँ तय कर दी गई हैं, कई जगहों पर नई पंचायतें जोड़ी गई हैं, जबकि कुछ पुरानी पंचायतों को समाप्त कर दिया गया है। कई गाँवों को नगर परिषद या नगर निगम जैसे नगरीय निकायों का हिस्सा बना दिया गया है।
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