राजस्थान के आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों के लिए अब दिल्ली में सेंट्रल डेपुटेशन पर जाना आसान नहीं रहेगा। राज्य सरकार ने इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए नौकरशाहों को केंद्र में भेजने पर रोक लगाने जैसी नीति अपनानी शुरू कर दी है।
सरकार का सख्त रुखजानकारी के अनुसार, राज्य सरकार को लगता है कि बड़े पैमाने पर अधिकारियों के दिल्ली जाने से प्रदेश में प्रशासनिक कामकाज प्रभावित हो रहा है। खासतौर से जब कई महत्वपूर्ण विभागों में पहले से ही अधिकारियों की कमी बनी हुई है। इसी कारण अब राज्य सरकार किसी भी अफसर को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति (डेपुटेशन) पर भेजने से पहले गहन समीक्षा कर रही है।
प्रिंसिपल सेक्रेटरी का मामलामामला तब चर्चा में आया जब पिछले महीने कार्मिक विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेटरी के.के. पाठक ने केंद्र सरकार में डेपुटेशन पर जाने की अनुमति मांगी थी। शुरुआत में राज्य सरकार ने इस पर हरी झंडी दे दी थी, लेकिन बाद में अचानक फैसला बदलते हुए अनुमति वापस ले ली। इससे साफ संकेत मिला कि सरकार अब डेपुटेशन के मामलों में उदार नहीं रहेगी।
क्यों अपनाई सख्ती?विशेषज्ञों का कहना है कि राजस्थान जैसे बड़े राज्य में लगातार डेपुटेशन पर अफसरों के जाने से यहां प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर दबाव बढ़ता है। विकास योजनाओं के क्रियान्वयन से लेकर कानून-व्यवस्था तक कई अहम जिम्मेदारियां प्रभावित होती हैं। इसी कारण राज्य सरकार चाहती है कि ज्यादा से ज्यादा अधिकारी यहीं रहकर प्रदेश के लिए सेवाएं दें।
केंद्र और राज्य के बीच समन्वय पर असरआमतौर पर अफसरों को केंद्र में काम करने का अवसर न केवल उनके कैरियर विकास के लिए अहम माना जाता है, बल्कि इससे राज्य को भी अप्रत्यक्ष रूप से फायदा मिलता है। क्योंकि केंद्र में अनुभव लेने वाले अधिकारी बाद में राज्य लौटकर नई कार्यशैली और दृष्टिकोण लाते हैं। लेकिन मौजूदा सख्ती से यह अवसर सीमित हो सकता है।
अफसरों में निराशासरकार के इस रवैये से उन अफसरों में निराशा है, जो अपने कैरियर के अगले पड़ाव के लिए दिल्ली जाने की तैयारी कर रहे थे। कई अधिकारियों का मानना है कि केंद्र में काम करने से उन्हें नीति-निर्माण और प्रशासनिक निर्णयों का व्यापक अनुभव मिलता है, जो आगे राज्य के लिए भी फायदेमंद साबित होता है।
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