राजस्थान की सियासत में एक बार फिर हलचल मच गई है। नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली के राम मंदिर दर्शन के बाद गंगाजल छिड़कने के मामले में उठे विवाद के चलते, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक ज्ञानदेव आहूजा की पार्टी सदस्यता समाप्त कर दी है।
बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ को इस पूरे प्रकरण की जांच सौंपी गई थी। राठौड़ ने अनुशासन समिति से विस्तृत रिपोर्ट तैयार करवाई, जिसमें ज्ञानदेव आहूजा के खिलाफ लगे आरोपों को सही पाया गया। इसके बाद प्रदेश नेतृत्व ने आहूजा के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करते हुए उनकी पार्टी सदस्यता समाप्त करने का निर्णय लिया।
गौरतलब है कि हाल ही में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने अयोध्या स्थित श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के दर्शन किए थे। इसके तुरंत बाद ज्ञानदेव आहूजा ने वहां गंगाजल छिड़कने की कार्रवाई की थी, जिसे लेकर सियासी हलकों में तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। इसे समाज में वैमनस्य फैलाने की कोशिश के तौर पर भी देखा गया, जिससे बीजेपी की छवि पर सवाल उठने लगे थे।
बीजेपी ने इस मामले को गंभीरता से लिया और आंतरिक अनुशासन समिति के जरिये जांच करवाई। रिपोर्ट में आहूजा के कृत्य को पार्टी के सिद्धांतों और मर्यादाओं के विरुद्ध माना गया। समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस तरह की गतिविधियां न केवल पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि सामाजिक सौहार्द्र को भी प्रभावित करती हैं।
प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ ने कहा, "बीजेपी एक अनुशासित पार्टी है। यहां किसी भी स्तर पर अनुशासनहीनता बर्दाश्त नहीं की जाती। अनुशासन समिति की रिपोर्ट के आधार पर यह कार्रवाई की गई है। पार्टी समाज में सौहार्द्र बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है और ऐसे किसी भी कृत्य को समर्थन नहीं देती जो सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाए।"
ज्ञानदेव आहूजा पहले भी अपने विवादास्पद बयानों और कार्यों को लेकर चर्चा में रहे हैं। हालांकि इस बार पार्टी ने सख्त रुख अपनाते हुए उनके खिलाफ निर्णायक कदम उठाया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी इस समय अपने अनुशासन और सार्वजनिक छवि को लेकर काफी सतर्क है, खासकर आगामी चुनावी माहौल को देखते हुए। ऐसे में किसी भी प्रकार की विवादास्पद गतिविधियों पर पार्टी का त्वरित और सख्त एक्शन देना रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
वहीं दूसरी ओर, ज्ञानदेव आहूजा ने इस कार्रवाई पर फिलहाल कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। उनके समर्थकों में इस निर्णय को लेकर नाराजगी देखी जा रही है, लेकिन पार्टी नेतृत्व अपने फैसले पर कायम है।
यह घटनाक्रम राजस्थान की राजनीति में एक बड़ा संदेश भी दे रहा है कि अब पार्टियां आंतरिक अनुशासन को लेकर किसी भी तरह की लापरवाही बर्दाश्त करने के मूड में नहीं हैं।
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