राजस्थान सरकारी स्वास्थ्य योजना (आरजीएचएस) में वित्तीय अनियमितताओं और घोटाले सामने आने के बाद शुरू हुई सख्ती अब मरीजों पर बोझ बनती जा रही है। योजना में कैशलेस दवा वितरण के लिए अधिकृत निजी दवा दुकानों से दवा देने के लिए कई तरह की बाध्यताएं जारी की गई हैं। इसके बाद कई विक्रेताओं ने मरीज को दवा देने से पहले पर्चे में गलतियां निकालनी शुरू कर दी हैं। अगर बिना दवा के पर्चा लौटा दिया जाता है तो मरीज के लिए दोबारा डॉक्टर के पास जाकर दवा लिखवाना आसान नहीं होता। निराश होकर उन्हें पैसे देकर दवा लेनी पड़ती है।
पोर्टल पर दवा अपलोड करने की बाध्यता
हाल ही में वित्त विभाग ने दवा विक्रेताओं के लिए नई एसओपी जारी की थी। जिसमें सरकारी डॉक्टर के निवास से दवा लिखे जाने पर डॉक्टर को खुद भी उसे आरजीएचएस पोर्टल पर अपलोड करने को कहा गया था। इस आदेश के बाद कई डॉक्टरों ने अपने निवास से आरजीएचएस मरीजों को दवा लिखना बंद कर दिया है। उनका कहना है कि हर पर्चे पर कई तरह की पूछताछ की जा रही है। ऐसे में दवा लिखने के बाद भी मरीज के परिजन चक्कर लगाते रहते हैं। इससे बचने के लिए वे आरजीएचएस के मरीजों को दवा न लिखना ही उचित समझते हैं।
ऐसे हो रहे हैं मरीज परेशान
एक डॉक्टर ने पेंशनर को दवा लिखी। उसे निजी दवा दुकान से तीन बार अलग-अलग गलतियां बताकर वापस भेज दिया गया। हर बार उसे डॉक्टर के पास जाना पड़ा। उसका बिल कैशलेस के जरिए बमुश्किल चुकाया गया। दवा विक्रेता पर्चे पर नाममात्र की गलतियां भी स्वीकार नहीं कर रहे हैं। उनका कहना है कि वित्त विभाग ऐसे पर्चे पर आपत्ति जता रहा है और भुगतान रोक रहा है। आवास पर लिखे पर्चे का नंबर भी मांगा जा रहा है। जबकि उस पर डॉक्टर की मुहर लगी होती है। मरीज और पेंशनर कहते हैं कि मुहर लगने के बाद निजी आवास का आउटडोर नंबर भी उचित नहीं है। आरोप है कि यह नियम मरीज को परेशान करने के लिए ही बनाया गया है।
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